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चित्र परिचय ३ ।
Illustration No. 3
मुक्ति के दो मार्ग १. यह संसार एक ऐसा भयानक जंगल है, जिसका कोई आदि-अन्त और छोर नहीं है-- (१) देवगति, (२) मनुष्यगति, (३) तिर्यंचगति, और (४) नरकगति। इस प्रकार चार गति रूप इसके चार विशाल कोने हैं। मुनिजन ज्ञान अर्थात् विद्या (शास्त्र) तथा चारित्र अर्थात् संयमरूपी रथ का सहारा लेकर इस अपार भव अटवी को पार कर अनन्त सुखमय सिद्धगति को प्राप्त कर लेते हैं। चित्र में श्रुत रथ में शास्त्र तथा चारित्र रथ में संयमोपकरण बताये हैं।
-स्थान २, सूत्र ४० २. मोक्ष-प्राप्ति का मुख्य साधन धर्म है। धर्म-प्राप्ति के दो मार्ग हैं-(१) धर्म-श्रवणसद्गुरुओं के मुख द्वारा कानों से धर्मशास्त्र का श्रवण करना, तथा (२) धर्म-ग्रहण-गुरुजनों से संयम व्रत व तप रूप चारित्र धर्म को ग्रहण कर कठोर संयम पथ पर चलना मुक्ति का दूसरा मार्ग है। चित्र में धर्म का श्रवण तथा ग्रहण बताया है।
-स्थान २, सूत्र ६३
TWO PATHS OF LIBERATION 1. This mundane existence is like a terrible forest that has neither a beginning nor an end. It has four prominent sections in the form of four genuses-(1) Divine birth, (2) Human birth, (3) Animal birth, and (4) Infernal birth. Ascetics or sages cross this jungle of rebirths and attain blissful Siddha state with the help of the chariots of shrut (knowledge of scriptures) and charitra (ascetic-discipline). The illustration shows scriptures in the chariot of Shrut and ascetic equipment in the chariot of conduct.
--Sthaan 2, Sutra 40 2. Dharma is the primary means of liberation. There are two ways of learning religion—(1) Dharma-shravan or to listen to the discourse on scriptures by a learned guru, and (2) Dharmagrahan-to accept the code of conduct comprising of discipline, vows and austerities from a guru and take to the path of strict ascetic discipline. The illustration shows the two.
Sthaan
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