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455 acharya and upadhyaya, cast aspersions on them, spread calumny about i
them; he preached falsehood and misled himself as well as others and filled wrong ideas in his mind as well as those of others through dogmatic falsehood; ... and so on up to... leading an independent itinerant ascetic life for many years he left his earthly body, without critical review and repenting for the sins committed in the past, at the time of death. Therefore he reincarnated as a divine being among the Kilvishik devs (servant gods) in the Lantak Kalp ( a divine dimension) with a life span of thirteen Sagaropam (a metaphoric unit of time). जमाली का भविष्य FUTURE OF JAMALI
११२. [प्र. ] जमाली णं भंते ! देवे ताओ देवलोयाओ आउक्खएणं जाव कहिं उववजिहिति ? __[उ. ] गोयमा ! जाव पंच तिरिक्खजोणिय-मणुस्स-देवभवग्गहणाई संसारं अणुपरियट्टित्ता ततो पच्छा सिज्झिहिइ जाव अंतं काहिइ। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति०।
॥ जमाली समत्तो ॥ __ ११२. [प्र. ] भगवन् ! वह जमालि देव उस देवलोक से आयु क्षय होने पर यावत् कहाँ उत्पन्न होगा?
[उ. ] गौतम ! तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और देव के पाँच भव ग्रहण करके और इतना संसार-परिभ्रमण करके तत्पश्चात् वह सिद्ध होगा, बुद्ध होगा यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगा।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरण करने लगे।
112. [Q.] Bhante! When that Jamali Dev exhausts his life-span, existence and stay in that divine realm ... and so on up to... where will he go and where will he be born?
A.] Gautam! He will pass through five births as animal. human and divine beings. After undergoing these rebirths he will get perfected
(Siddha), enlightened (Buddha), liberated (mukta) ... and so on up to... 卐 end all miseries.
"Bhante! Indeed that is so. Indeed that is so." With these words... and so on up to... ascetic Gautam resumed his activities. के विवेचन : शंका-समाधान-यहाँ शंका उपस्थित होती है कि भगवान सर्वज्ञ थे और जमालि के भविष्य में
प्रत्यनीक होने की घटना को जानते थे, फिर भी उसे क्यों प्रव्रजित किया? इसका समाधान वृत्तिकार इस प्रकार करते हैं-अवश्यम्भावी भवितव्य को महापुरुष भी टाल नहीं सकते अथवा इसी प्रकार ही उन्होंने गुणविशेष देखा होगा। अर्हन्त भगवान अमूढलक्षी होने से किसी भी क्रिया में निष्प्रयोजन प्रवृत्त नहीं होते। (वृत्ति, पत्र ४९०)
भगवती सूत्र (३)
(502)
Bhagavati Sutra (3)
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