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of moving, fruiting does not mean already fruited but in process of 5 fruiting ... and so on up to ... shedding does not mean already shed but in process of being shed." With these thoughts he called his fellow ascetics and said "Beloved of gods! Shraman Bhagavan Mahavir asserts and so on up to... establishes that moving means already moved ... and so on up to... shedding does not mean already shed but in process of being shed." (repeat as aforesaid)
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मट्ठे णो सद्दति णो पत्तियंति णो रोयंति ते णं जमालिस्स अणगारस्स अंतियाओ कोट्टयाओ चेइयाओ डिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता पुव्वाणुपुव्विं चरमाणा गामाणुगामं दूइज्जमाणा जेणेव चंपानयरी जेणेव ॐ पुण्णभद्दे चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, करित्ता वंदंति, णमंसंति २ समणं भगवं महावीरं उवसंपज्जित्ताणं विहरति ।
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श्रमणों द्वारा जमालि के सिद्धान्त का स्वीकार, अस्वीकार ACCEPTANCE AND REFUSAL OF JAMALI'S THEORY
९७. तए णं तस्स जमालिस्स अणगारस्स एवं आइक्खमाणस्स जाव परूवेमाणस्स अत्थेगइया समणा निग्गंथा एयमटं सद्दति पत्तियंति रोयंति । अत्थेगइया समणा निग्गंथा एयमटं णो सद्दहंति णो पत्तियंति णो रोयंति । तत्थ णं जे ते समणा निग्गंथा जमालिस्स अणगारस्स एयमट्टं सद्दहंति पत्तियंति रोयंति ते णं ! जमालिं चैव अणगारं उवसंपज्जित्ताणं विहरति । तत्थ णं जे ते समणा निग्गंथा जमालिस्स अणगारस्स
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97. When ascetic Jamali said and so on up to... propagated thus some ascetics expressed faith, interest, and acceptance while many others did not show any faith, interest, and acceptance. Those ascetics who expressed faith, interest, and acceptance in Jamali's doctrine, became disciples of Jamali. Those who had no faith, interest, and f acceptance in Jamali's doctrine (that defied the Jina's word), left Jamali, came out of Koshthak garden and wandering from one village to another came to Purnabhadra Chaitya outside Champa City where Shraman
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१७. जमालि अनगार द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर यावत् प्ररूपणा किये जाने पर कई श्रमण निर्ग्रन्थों ने इस (उपर्युक्त) बात पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि की तथा कितने ही श्रमण निर्ग्रन्थों ने इस बात पर श्रद्धा, प्रतीति एवं रुचि नहीं की। उनमें से जिन श्रमण-निर्ग्रन्थों ने जमालि अनगार की बात पर श्रद्धा, प्रतीति एवं रुचि की, वे जमालि अनगार की निःश्राय में विचरण करने लगे और जिन श्रमण निर्ग्रन्थों ने जमालि अनगार की इस (जिन - वचन विरुद्ध) बात पर श्रद्धा, प्रतीति और रुचि नहीं की, वे जमाल अनगार के पास से, कोष्ठक उद्यान से निकल गये और अनुक्रम से विचरते हुए एवं ग्रामानुग्राम विहार करते हुए, चम्पा नगरी के बाहर जहाँ पूर्णभद्र नामक चैत्य था और जहाँ श्रमण भगवान महावीर विराजमान थे, वहाँ उनके पास पहुँचे। उन्होंने श्रमण भगवान महावीर की तीन बार दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा की, फिर वन्दना - नमस्कार करके वे भगवान की निःश्राय स्वीकार कर विचरने लगे।
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भगवती सूत्र (३)
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Bhagavati Sutra (3)
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