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चित्र-परिचय 24]
Illustration No. 24 मिथ्या प्ररूपणा करते जमालि अणगार ___ जमालि अणगार को अरस, विरस, रुक्ष, तुच्छ आदि भोजन से एक बार शरीर में विपुल व्याधि (रोगांतक) उत्पन्न हो गया। उनका शरीर पित्त ज्वर से व्याधित होने के कारण दाह से युक्त हो गया। वेदना से पीड़ित जमालि अणगार ने अपने श्रमणों को बुलाकर कहा कि मेरे सोने के लिए संस्तारक (बिछौना) बिछा दो। श्रमण, जमालि अणगार के लिए बिछौना बिछा ही रहे थे तभी वेदना से पीड़ित जमालि अणगार अधीर होकर दुबारा पूछते हैं कि संस्तारक बिछा दिया या बिछा रहे हो? उत्तर में श्रमणों ने कहा-“बिछौना
बिछा नहीं, बिछाया जा रहा है।" तब जमालि अणगार के मन में ये विचार आया कि बिछौना बिछाया जा 卐 रहा है? अब तक बिछा नहीं है। परन्तु भगवान महावीर तो कहते हैं- "चलमान चलित है, यावत् निर्जीर्यमाण
निजीर्ण है।" अर्थात् जो हो रहा है वह हो गया। उनका यह कथन मिथ्या है। इस कारण चलमान चलित ॐ नहीं किन्तु अचलित है। इस पर विचार करते-करते उन्होंने भगवान के इस सिद्धांत को मिथ्या मान लिया।
व्याधि से मुक्त होने के बाद जमालि अणगार भगवान के पास आकर कहने लगे कि मैं केवलज्ञान और केवलदर्शन को धारण करने वाला हूँ अर्थात् मैं केवली हो गया हूँ।
तीर्थंकर की आशातना और मिथ्या मान्यता की आलोचना, प्रायश्चित्त नहीं करने से जमालि अणगार काल करके छठे लांतक देवलोक में किल्विषिक देव रूप में उत्पन्न हुये।
-शतक 9,उ.33
ANTITHETICAL THEORY OF JAMALI
Once because of consuming unhealthy food including tasteless, foul, and leftover, Jamali suffered from a grave sickness. He suffered from bile fever and ran a very high temperature. Suffering from such intense agony, Jamali summoned his juniors and asked them to spread his bed so that he could lie down. While they were spreading the bed, excruciating pain made ascetic Jamali impatient. He once again asked the juniors if they had spread the bed. The ascetics replied - "We have not yet spread the bed for you, it is still being spread."At thisa thought flashed in ascetic Jamali's mind-- “Bhagavan Mahavir says that moving means already moved... and so on up to... shedding means already shed. Which means that what is being done has been done. This assertion is false. Therefore, in fact, moving does not mean already moved but still unmoved." With these thoughts he decided that Bhagavan's doctrine was wrong.
After ascetic Jamali got cured of his ailment he went to Bhagavan Mahavir and said that he had acquired omniscience and ultimate perception and thus become Kevali.
As a consequence of insulting a Tirthankar and not doing critical review and repenting for his false belief Jamali reincarnated as a divine being among the Kilvishik devs in the Lantak Kalp (the sixth divine dimension).
-Shatak-9, lesson-33
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