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________________ फ्र ८०. तए णं सं जमाली खत्तियकुमारे समणेणं भगवया महावीरेणं एवं बुत्ते समाणे हट्टतुट्टे समणं गवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमंसित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसिभागं अवक्कमइ, अवक्कमित्ता सयमेव 5 भरण - मल्लालंकारं ओमुयइ । 卐 फ्र ८०. भगवान के द्वारा स्वीकृति होने पर क्षत्रियकुमार जमालि हर्षित और तुष्ट हुआ; तत्पश्चात् 卐 मण भगवान महावीर को तीन बार प्रदक्षिणा कर यावत् वन्दना - नमस्कार कर, उत्तर-पूर्व दिशा ईशानकोण) में गया। वहाँ जाकर उसने स्वयं ही आभूषण, माला और अलंकार उतार दिये। 80. Being thus accepted by Bhagavan, Kshatriya youth Jamali was leased and contented. He went around Shraman Bhagavan Mahavir nd so on up to... paid homage and obeisance. Then he proceeded in the ortheast direction and removed all his ornaments and dress. ८१. तए णं से जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माया हंसलक्खणेणं पडसाडएणं आभरण - मल्लालंकारं डिच्छति, पडिच्छित्ता हार - वारि जाव विणिम्मुयमाणी विणिम्मुयमाणी जमालिं खत्तियकुमारं एवं यासी - 'घडियव्वं जाया ! जइयव्वं जाया ! परक्कमियव्वं जाया ! अस्सिं च णं अट्टे णो पमायेयव्वं' ति जमालिस खत्तियकुमारस्स अम्मा-पियरो समणं भगवं महावीरं वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता, मेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया। ८१. इसके तत्पश्चात् जमालि क्षत्रियकुमार की माता ने उन आभूषणों, माला एवं अलंकारों को स के चिह्न वाले एक पटशाटक ( रेशमी वस्त्र ) में ग्रहण कर लिया और फिर टूटे मोती के हार, धारा, इत्यादि के समान यावत् आँसू गिराती हुई अपने पुत्र से इस प्रकार बोली- हे पुत्र ! संयम में पराक्रम करना । इस (संयम के) विषय में करना, पुत्र ! संयम में यत्न करना; हे पुत्र ! संयम में रा भी प्रमाद न करना । इस प्रकार कहकर जमालि के माता-पिता श्रमण भगवान महावीर को न्दना - नमस्कार करके स्वस्थान को वापस चले गये । 81. Kshatriya youth Jamali's mother collected the dress and rnaments in a soft piece of silk with a swan mark and shedding tears ike a broken necklace, a stream of water etc. uttered "Son! Put in all liligence, effort, and prowess into your practices and do not be ethargic." After this, Kshatriya youth Jamali's parents bowed before Shraman Bhagavan Mahavir with all reverence and went back in the lirection they came from. नवम शतक : तेतीसवाँ उद्देशक (483) Jain Education International 259595555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5959595959595955555555974945955 59595 2 - ८२. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेति, करित्ता जेणेव समणे भगवं |हावीरे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता एवं जहा उसभदत्तो (सूत्र १६ ) तहेव पव्वइओ, नवरं पंचहिं 5 रिससएहिं सद्धिं तहेव सव्वं जाव सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जइ, सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जेत्ता बहूहिं चउत्थ-छट्ट -ऽट्ठम जाव मासद्धमासखमणेहिं विचित्तेहिं तवोकम्मेहिं अप्पा भावेमाणे विहरइ । Ninth Shatak: Thirty Third Lesson 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 For Private & Personal Use Only 卐 卐 卐 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002904
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages664
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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