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955555555555555555555555555555555 ॐ नासानिस्सासवायवोझं चक्खुहरं वण्णफरिसजुत्तं हयलालापेलवातिरेगं धवलं कणगखचियंतकम्मं महरिहं
हंसलक्खणं पडसाडगं परिहिंति, परिहित्ता हारं पिणझैंति, २ अद्धहारं पिणद्वेति, अ० पिणद्धित्ता एवं जहा ॐ सूरियाभस्स अलंकारो तहेव जाव चित्तं रयणसंकडुक्कडं मउडं पिणद्धंति, किं बहुणा ? गंथिम-वेढिम-पूरिम-संघातिमेणं चउबिहेणं मल्लेणं कप्परुक्खगं पिव अलंकियविभूसियं करेंति।
५७. इसके पश्चात् क्षत्रियकुमार जमालि के माता-पिता ने दूसरी बार भी उत्तरदिशाभिमुख सिंहासन रखवाया और क्षत्रियकुमार जमालि को श्वेत और पीत (चाँदी और सोने के) कलशों से स्नान करवाया। फिर रुएँदार सुकोमल गन्धकाषायित सुगन्धियुक्त वस्त्र (तौलिये या अंगोछे) से उसके अंग
(गात्र) पोंछे। उसके बाद सरस गोशीर्षचन्दन का गात्रों पर लेपन किया। तदनन्तर नाक के निःश्वास की ॐ वायु से उड़ जाए, ऐसा बारीक, नेत्रों को आह्लादक (या आकर्षक) लगने वाला, सुन्दर वर्ण और कोमल + स्पर्श से युक्त, घोड़े के मुख की लार से भी अधिक कोमल, श्वेत और (किनारे पर) सोने के तारों से ॐ जड़ा हुआ, महामूल्यवान् एवं हंस के चिह्न से युक्त पटशाटक (रेशमी वस्त्र) पहनाया। फिर हार 卐 (अठारह लड़ी वाला हार) एवं अर्द्ध-हार (नवसरा हार) पहनाया। जैसे राजप्रश्नीयसूत्र में सूर्याभदेव के
अलंकारों का वर्णन है, उसी प्रकार यहाँ भी समझना चाहिए, यावत् विचित्र रत्नों से जटित मुकुट ऊ पहनाया। अधिक क्या कहें ! ग्रन्थिम (Dथी हुई), वेष्टिम (लपेटी हुई), पूरिम (पूरी हुई-भरी हुई) और
संघातिम (परस्पर संघात की हुई जोड़ी हुई) रूप से तैयार की हुई चारों प्रकार की मालाओं से कल्पवृक्ष के समान उस जमालिकुमार को अलंकृत एवं विभूषित किया गया।
57. Once again Kshatriya youth Jamali's parents got a throne placed facing north and helped him taking bath with water poured from white and yellow (silver and golden) pitchers; wiped his body dry with fragrant and perfumed soft towel, and applied best quality of sandal-wood paste (saras Goshirsh-chandan). Now they provided him a silk dress to wear. It was so fine as to wave with force of normal breathing. It was pleasant to : the eyes, beautiful in colour and soft in touch. It was white, softer than the saliva from a horse's mouth and with a golden brocade border. It was very costly and printed with a swan-emblem. Having done that they placed a necklace (with eighteen strings) and half necklace (with nine strings) on his neck. After this they adorned him with numerous ornaments like those of Suryaabh Dev as described in Rajprashniya
Sutra ... and so on up to... placed a gem studded crown on his head. $ Needless to add more to the description beyond saying that he was fully
embellished with four kinds of garlands including granthim (made by stringing), veshtim (made by wrapping), purim (made by braiding or filling) and sanghatim (made by interweaving or entwining) so much so that he looked like a wish-fulfilling tree (Kalp-vriksha) in all respects.
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| भगवती सूत्र (३)
(472)
Bhagavati Sutra (3)
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