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३५. इसके पश्चात् क्षत्रियकुमार जमालि की व्याकुलतापूर्वक इधर-उधर गिरती हुई माता के
शरीर पर शीघ्र ही दासियों ने स्वर्णकलसों के मुख से निकली हुई शीतल एवं निर्मल जलधारा का सिंचन फ करके शरीर को स्वस्थ किया। फिर (बाँस के बने हुए) उत्क्षेपकों (पंखों) तथा ताड़ के पत्तों से बने पंखों से जलकणों (फुहारों) सहित हवा की । तदनन्तर ( मूर्च्छा दूर होते ही ) अन्तःपुर के परिजनों ने उसे आश्वस्त किया । (मूर्च्छा दूर होने पर) रोती हुई, क्रन्दन करती हुई, शोक करती हुई एवं विलाप करती हुई माता क्षत्रियकुमार जमालि से इस प्रकार कहने लगी- पुत्र ! तू हमारा इकलौता ही पुत्र है, (इसलिए)
तू हमें इष्ट है, कान्त है, प्रिय है, मनोज्ञ है, मनसुहाता है, आधारभूत है, विश्वासपात्र है, (इस कारण ) तू
सम्मत (सलाह देने योग्य), अनुमत (कार्य में सहायक) और बहुमत ( बहुमान्य) है। तू आभूषणों के पिटारे (करण्डक) के समान है, रत्नस्वरूप है, रत्नतुल्य है, जीवन या जीवितोत्सव के समान है, हृदय
5 को आनन्द देने वाला है; उदुम्बर ( गूलर) के फूल के समान तेरा नाम-श्रवण भी दुर्लभ है, तो तेरा दर्शन
दुर्लभ
हो, इसमें कहना ही क्या ! इसलिए हे पुत्र ! तेरा क्षणभर का वियोग भी हम नहीं चाहते। इसलिए
5 जब तक हम जीवित रहें, तब तक तू घर में ही रह । उसके पश्चात् जब हम (दोनों) कालधर्म को प्राप्त (परलोकवासी) हो जाएँ, तेरी उम्र भी परिपक्व हो जाए, ( और तब तक) कुलवंश की वृद्धि (पुत्र-पौत्रादि का त्याग करके श्रमण भगवान महावीर के पास मुण्डित होकर अनगारधर्म में प्रव्रजित होना ।
होने पर) का कार्य हो जाए, तब (गृह - प्रयोजनों से ) निरपेक्ष (निश्चिंत ) होकर तू गृहवास
35. The attendants poured cold water on Kshatriya youth Jamali's grief stricken unsteady mother's face from a golden urn and she calmed
down. Humid air was blown at her with water soaked fans made of
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bamboo relatives
and palm leaves. After that (when she gained consciousness) her and staff members uttered words of encouragement to console
her. (When she regained her consciousness) she started crying. Choked
with anguish she lamented, wailed, sobbed and said to Jamali, the Kshatriya youth, “Son! You are our only and cherished, lovely, adored, charming, and beloved son. You are the source of our peace and confidence. As you are faithful and obedient we consider you to be excellent not just good. You are like a chest full of ornaments or gems for us. You are the hope of our life and source of our joy. It is difficult to hear about a son like you, what to say of seeing one that is as rare as a Gular flower. Darling! We will not be able to tolerate separation from you even for a moment. As such, we implore you to enjoy the excitement and pleasures of human life as long as we live. When we breathe our last and you get middle aged, fulfill your duty of continuation of the clan, and have no desire of any worldly activity, you may go to Shraman Bhagavan Mahavir and get initiated following the prescribed procedure."
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नवम शतक : तेतीसवाँ उद्देशक
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(455)
Ninth Shatak: Thirty Third Lesson
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