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चित्र - परिचय 3
ज्ञान जीव का स्वाभाविक गुण है। ज्ञान के पाँच भेद बताये गये हैं
1. मति ज्ञान, 2. श्रुत ज्ञान, 3. अवधि ज्ञान, 4. मनः पर्यव ज्ञान, 5. केवल ज्ञान ।
पर्यायों
बुद्धि द्वारा ग्राह्य ज्ञान को मतिज्ञान कहते हैं। ये पाँच इंद्रियों और मन से होता है। सुनने, बोलने या व्यक्त करने योग्य ज्ञान को श्रुतज्ञान कहते हैं। मर्यादित क्षेत्र के रूपी पदार्थों को जानने वाले ज्ञान को अवधिज्ञान कहते हैं। मनुष्य क्षेत्र के संज्ञी जीवों के मनोगत भावों को जानने वाले ज्ञान को मनः पर्यव ज्ञान कहते हैं । सर्व रूपी-अरूपी द्रव्यों की सर्व पर्यायों को जानने वाले ज्ञान को केवलज्ञान कहते हैं। मति श्रुत ज्ञानी - द्रव्य से सर्व द्रव्य, क्षेत्र से सर्व क्षेत्र, काल से सर्व काल और भाव से सर्व भाव को उपयोग से सामान्य रूप से जानते-देखते हैं अर्थात् सर्व द्रव्य की, सर्वकाल आदि की सभी पर्यायों को नहीं जानते हैं । अवधिज्ञानी - सम्पूर्ण लोक के सर्व रूपी द्रव्य को जानते-देखते हैं। अलोक में भी अगर लोक जितने असंख्य खंड हों तो उसको भी देखने की शक्ति रखते हैं (अलोक में रूपी द्रव्य होते ही नहीं, इसलिए देखते नहीं। अगर होते तो देख सकते थे। ) । मनः पर्यव ज्ञानी - मनुष्य क्षेत्र के अंदर जितने भी संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव हैं उनके मनोगत भावों को जानते हैं । यदि देव यहाँ आते हैं तो उसके भी मनोगत भाव को जान सकते हैं । केवलज्ञानी लोक- अलोक के सर्व द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की, सर्व
'जानते-देखते हैं।
Illustration No. 3
पाँच ज्ञान का उत्कृष्ट विषय
jnana.
- शतक 8, उ. 2, सूत्र 19 MAXIMUM RANGES OF FIVE KINDS OF KNOWLEDGE
Knowledge is the natural attribute of soul. It is of five kinds -
(1) Mati-jnana, (2) Shrut-jnana, (3) Avadhi-jnana, (4) Manah-paryav-jnana and (5) Keval
Mati-jnana is sensory knowledge and is acquired by means of five sense organs and the mind. Shrut-jnana is scriptural knowledge that is acquired through hearing and conveyed or expressed by speaking. Avadhi-jnana is extrasensory perception of limited physical dimension. Manah-paryav-jnana is extrasensory perception and knowledge of thought process and thought-forms of sentient beings living in area of humans. Keval-jnana is omniscience or the knowledge of all modes of all things with and without form.
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Mati-shrut jnani (endowed with sensual and scriptural knowledge) - Those who know and see all things in all areas, at all times and all angles, but ordinarily. In other words they do not know and see all modes of all things etc. Avadhi jnani - Those who know and see all things in physical dimension (having form) in the whole Lok. They have power to see things with form even in Alok (unoccupied space) in case they did exist. Manah-paryav jnani - फ्र Those having extrasensory perception and knowledge of thought process and thought-forms of sentient beings living in area of humans. They also are capable of knowing the thoughts of divine beings when they enter the area of humans. Keval jnani - They have the knowledge of all modes of all things with and without form.
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-Shatak-8, lesson-2. Sutra-19
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