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१०. तए णं सा देवाणंदा माहणी ण्हाया जाव अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा बहूहिं खुज्जाहिं चिलाइयाहिं जाव अंतेउराओ निग्गच्छइ; अंतेउराओ निग्गच्छित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव धम्मिए जाणप्पवरे तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता जाव धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढा ।
१०. तब देवानन्दा ब्राह्मणी ने भी (अन्तःपुर में) स्नान किया, यावत् अल्प भार वाले महामूल्य आभूषणों से शरीर को सुशोभित किया। फिर बहुत-सी कुब्जा दासियों तथा चिलात देश की दासियों के साथ यावत् अन्तःपुर से निकली । अन्तःपुर से निकलकर जहाँ बाहर की उपस्थानशाला थी और जहाँ श्रेष्ठ धार्मिक रथ खड़ा था, वहाँ आई । उस श्रेष्ठ धार्मिक रथ पर आरूढ़ हुई ।
10. Brahmani Devananda (in the inner quarters ) also took her bath ... and so on up to ... adorned her body with ornaments that were light in 5 weight and high in value. She then came out of his residence accompanied by many maids including the hunchbacked ones and those from Chilat country. She proceeded to the outer courtyard where the carriage was parked. She then boarded the carriage.
११. तए णं से उसभदत्ते माहणे देवाणंदाए माहणीए सद्धिं धम्मियं जाणप्पवरं दुरूढे समाणे णियगपरियाल संपरिवुडे माहणकुंडग्गामं नगरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव बहुसालए चेइए फ्र तेणेव उवागच्छइ, तेणेव उवागच्छित्ता छत्तादीए तित्थकरातिसए पासइ, पासित्ता धम्मियं जाणप्पवरं टवेइ, ठवेत्ता धम्मियाओ जाणप्पवराओ पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ, तं जहा - सचित्ताणं दव्वाणं विओसरणयाए एवं जहा बिइयसए ( स. २, उ. ५, सु. १४ ) जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासइ ।
११. इसके पश्चात् वह ऋषभदत्त ब्राह्मण देवानन्दा ब्राह्मणी के साथ श्रेष्ठ धार्मिक रथ पर चढ़ा हुआ अपने परिवार से परिवृत्त होकर ब्राह्मणकुण्डग्राम नामक नगर के मध्य में होता हुआ निकला और बहुशालक नामक उद्यान में आया । वहाँ तीर्थंकर भगवान के छत्र आदि अतिशयों को देखा। देखते ही उसने श्रेष्ठ धार्मिक रथ को ठहराया और उस श्रेष्ठ धर्म रथ से नीचे उतरा। रथ से उतरकर वह श्रमण भगवान महावीर के पास पाँच प्रकार के अभिगमपूर्वक गया। वे पाँच अभिगम इस प्रकार हैं - ( 9 ) सचित्त द्रव्यों का त्याग करना इत्यादि; द्वितीय शतक (के पंचम उद्देशक, सू. १४) में कहे अनुसार यावत् तीन प्रकार की पर्युपासना से उपासना करने लगा ।
11. Then that Brahman Rishabh-datt along with Brahmani Devananda riding the best religious carriage and surrounded by his family crossed the city named Brahman Kundagram and arrived at Bahushalak garden. There he observed the divine canopy and other divine signs of a Tirthankar. He then stopped his best religious carriage and alighted from it. After getting down from the carriage he observed the five codes of courtesy meant for a religious assembly (abhigam) and नवम शतक: तेतीसवाँ उद्देशक
Ninth Shatak: Thirty Third Lesson
*தமிழக திமிதததிமிததகததத்திமிக்கத***ழ*சுமிககுமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமி
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