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गगमा
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५५. [ प्र. १ ] सयं भंते! पुढविक्काइया० पुच्छा ।
[उ. ] गंगेया ! सयं पुढविकाइया जाव उववज्र्ज्जति, नो असयं पुढविक्काइया जाव उववज्र्ज्जति ।
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५५. [ प्र. १ ] भगवन् ! क्या पृथ्वीकायिक, पृथ्वीकायिकों में स्वयं उत्पन्न होते हैं, या अस्वयं उत्पन्न होते हैं ?
[ उ. ] गांगेय ! पृथ्वीकायिक, पृथ्वीकायिकों में स्वयं यावत् उत्पन्न होते हैं, अस्वयं उत्पन्न नहीं होते ।
५६. एवं जाव मणुस्सा ।
५५. [प्र.२ ] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहते हैं कि पृथ्वीकायिक स्वयं उत्पन्न होते हैं, इत्यादि ?
[ उ. ] गांगेय ! कर्म के उदय से, कर्मों की गुरुता से, कर्म के भारीपन से, कर्म के अत्यन्त गुरुत्व और भारीपन से, शुभाशुभ कर्मों के उदय से, शुभाशुभ कर्मों के विपाक से, फलविपाक से पृथ्वीकायिक, पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं, अस्वयं उत्पन्न नहीं होते। इसलिए हे गांगेय ! पूर्वोक्त रूप से कहा गया है।
शुभाशुभ कर्मों
५६. इसी प्रकार यावत् मनुष्य तक जानना चाहिए।
55. [Q. 2] Bhante ! Why do you say that earth-bodied beings get born among earth-bodied beings of their own accord and not otherwise?
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55. [Q. 1] Bhante ! Do earth-bodied beings get born among earthbodied beings of their own accord or they get born not of their own 卐 accord?
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(429)
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Ninth Shatak: Thirty Second Lesson
[Ans.] Gangeya ! Earth-bodied beings get born among earth-bodied beings of their own accord and not otherwise.
५५. [ प्र. २ ] से केणद्वेणं भंते ! एवं बुच्चइ जाव उववज्जंति ?
[उ. ] गंगेया ! कम्मोदएणं कम्मगुरुयत्ताए कम्मभारियत्ताए कम्मगुरुसंभारित्ताए, सुभासुभाणं कम्माणं उदएणं, सुभासुभाणं कम्माणं विवागेणं, सुभासुभाणं कम्माणं फलविवागेणं सयं पुढविकाइया जाव 5 उववज्जंति, नो असयं पुढविकाइया जाव उववज्र्ज्जति । से तेणट्टेणं जाव उववज्जंति ।
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[Ans.] Gangeya ! Earth-bodied beings get born among earth-bodied beings of their own accord due to fruition of karmas, due to magnitude of karmas, due to mass of karmas, due to excessive magnitude and mass of 5 karmas, due to fruition of noble-ignoble karmas, due to consequence of 5 noble-ignoble karmas and due to maturing of fruits of noble-ignoble karmas and not otherwise (or not due to influence of some other agency). That is why, Gangeya ! I say as aforesaid.
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56. The same holds good for all living beings up to human beings.
नवम शतक : बत्तीसवाँ उद्देशक
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