SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 450
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 日历历历步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步牙牙牙牙牙牙牙 卐5555555 卐1155555559 ॐ पाँच नैरयिकों के चतुःसंयोगी भंग 140 ALTERNATIVES FOR SETS OF FOUR २०. (ग) अहवा एगे रयण०, एगे सक्कर०, एगे वालुय०, दो पंकप्पभाए होज्जा १। एवं जाव अहवा म एगे रयण०, एगे सक्कर०, एगे वालुय०, दो अहेसत्तमाए होज्जा ४। अहवा एगे रयण०, एगे सक्कर०, ॐ दो वालुय०, एगे. पंकप्पभाए होज्जा १-५। एवं जाव अहेसत्तमाए ४-८। अहवा एगे रयण०, दो सक्करप्पभाए, एगे वालुय०, एगे पंकप्पभाए होज्जा १-९। एवं जाव अहवा एगे रयण०, दो सक्कर०, ॐ एगे वालुय०, एगे अहेसत्तमाए होज्जा ४-१२। अहवा दो रयण०, एगे सक्कर०, एगे वालुय०, एगे पंकप्पभाए होज्जा १-१३। एवं जाव अहवा दो रयण०, एगे सक्कर०, एगे वालुय०, एगे अहेसत्तमाए ॐ होज्जा ४-१६। अहवा एगे रयण०, एगे सक्कर०, एगे पंक०, दो धूमप्पभाए होज्जा १-१७। एवं जहा चउण्हं चउक्कसंजोगो भणिओ तहा पंचण्ह वि चउक्कसंजोगो भाणियव्यो, नवरं अब्भहियं एगो संचारेयव्यो, ॐ एवं जाव अहवा दो पंक०, एगे धूम०, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा १४०। २०. (ग) (पाँच नैरयिकों के चतुःसंयोगी १४० भंग) (१) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा + में, एक बालुकाप्रभा में और दो पंकप्रभा में होते हैं। इसी प्रकार (२-४) यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, - एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और दो अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं। (यों १-१-१-२ के 卐 संयोग से चार भंग होते हैं।) (१) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, दो बालुकाप्रभा में और - एक पंकप्रभा में होता है। इसी प्रकार (२-४) यावत् एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, दो ! ॐ बालुकाप्रभा में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है। (यों १-१-२-१ के संयोग से चार भंग होते है हैं।) (१) अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में होता है। 5 में इस प्रकार (२-४) यावत् एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और एक अधः + सप्तम-पृथ्वी में होता है। (यों १-२-१-१ के संयोग से चार भंग होते हैं।) (१) अथवा दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और एक पंकप्रभा में होते हैं। इसी प्रकार यावत् (२-४) अथवा +दो रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है। (यों २-१-१-१ के संयोग से चार भंग होते हैं।) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में, एक पंकप्रभा ऊ में और दो धूमप्रभा में होते हैं। जिस प्रकार चार नैरयिक जीवों के चतुःसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार पाँच नैरयिक जीवों के चतुःसंयोगी भंग कहना चाहिए, किन्तु यहाँ एक अधिक का संचार (संयोग) 卐 करना चाहिए। इस प्रकार यावत् दो पंकप्रभा में, एक धूमप्रभा में, एक तमःप्रभा में और एक अधः + सप्तग-पृथ्वी में होता है, यहाँ तक कहना चाहिए। (ये चतुःसंयोगी १४० भंग होते हैं।) 20. (c) 140 options for sets of four - Or (1) one in the first hell (Ratnaprabha Prithvi), one in the second hell (Sharkaraprabha Prithvi), one in the third hell (Balukaprabha Prithvi) and two in the fourth hell (Pankaprabha Prithvi). Or (2-4) ... and so on up to... one in the first hell (Ratnaprabha Prithvi), one in the second hell (Sharkaraprabha Prithvi), 555555555555555555555555555515515555555555555558 8494555555555))))))))) | भगवती सूत्र (३) (382) Bhagavati Sutra (3) 图%%%%%%步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002904
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages664
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy