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combinations.)
In the same way alternative combinations should be
stated for the third and following hells... and so on up to... four are born 5
in the third hell (Balukaprabha Prithvi) and one in the seventh hell (Adhah-saptam Prithvi).
विवेचन : पाँच नैरयिकों के द्विकसंयोगी ८४ भंग- इसके ४ विकल्प होते हैं । यथा - १-४, २-३, ३-२ और ४-१ । रत्नप्रभा के द्विकसंयोगी ६ भंगों के साथ ४ विकल्पों का गुणा करने पर २४ भंग होते हैं । शर्कराप्रभा के साथ ५ भंगों से ४ विकल्पों का गुणा करने पर २०, बालुकाप्रभा के साथ १६, पंकप्रभा के साथ १२, धूमप्रभा के साथ ८ और तमःप्रभा के साथ ४ भंग होते हैं । इस प्रकार कुल २४ + २० + १६ + १२ + ८ + ४ = ८४ भंग द्विकसंयोगी होते हैं।
alternative combinations. For the
पाँच नैरयिकों के त्रिसंयोगी भंग 210 ALTERNATIVES FOR SETS OF THREE
Elaboration-There are four sets of combinations for the five infernal beings – 1-4, 2-3, 3-2, and 4-1. There are 6 alternatives for these four 5 sets of combinations for the first hell, making a total of 6x4 = 24 alternative combinations. For the second hell there are 5x4 third hell there are 4x4
5 alternative combinations. For the fourth hell there are 4x4 = 16 फ्र
5 alternative combinations. For the fifth hell there are 3x4 = 12 alternative
For the sixth hell there
combinations. combinations.
are 2x4 = 8 alternative And for the seventh hell there are 1x4 = 4 alternative combinations. Thus the total number of alternative combinations for sets
of two are 24+20+16+12+8+4 = 84.
रयण०,
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= 20
(379)
16
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Ninth Shatak: Thirty Second Lesson
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२०. (ख) अल्वा एगे रयण०, एगे सक्कर०, तिण्णि वालुयप्पभाए होज्जा १ । एवं जाव अहवा एगे रयण०, एगे सक्कर०, तिण्णि आहेसत्तमाए होज्जा ५ अहवा एगे रयण०, दो सक्कर०, वालुयप्पभाए होज्जा १- ६ । एवं जाव अहवा एगे रयण०, दो सक्कर ०, दो असत्तमाए होज्जा ५-१० ।
अहवा दो रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, दो वालुयप्पभाए होज्जा १ - ११ । एवं जाव अहवा दो रयणप्पभाए, एगे सक्करप्पभाए, दो अहेसत्तमाए होज्जा ५ - १५ । अहवा एगे रयण०, तिण्णि सक्कर, वालुयपभाए होज्जा १ - १६ । एवं जाव अहवा एगे रयण०, तिण्णि सक्कर०, एगे अहेसत्तमाए 5 होज्जा ५-२० अहवा दो रयण०, दो सक्कर०, एगे वालुयप्पभाए होज्जा १ - २१ । एवं जाव दो दो सक्कर०, एगे अहेसत्तमाए ५ - २५ | अहवा तिण्णि रयण०, एगे सक्कर०, एगे वालुयप्पभाए होज्जा १ - २६ । एवं जाव अहवा तिण्णि रयण०, एगे सक्कर०, एगे अहेसत्तमाए होज्जा ५ - ३० । अहवा एगे रयण०, एगे वालुय०, तिण्णि पंकप्पभाए होज्जा १ - ३१ । एवं एएणं कमेणं जहा फ चउन्हं तियसंजोगो भणितो तहा पंचण्ह वि तियसंजोगो भाणियव्वो; नवरं तत्थ एगो संचारिज्जइ, 卐 दोणि, सेसं तं चेव, जाव अहवा तिण्णि धूमप्पभाए एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा २१० ।
नवम शतक : बत्तीसवाँ उद्देशक
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