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________________ + पाँच नैरयिकों के प्रवेशनक भंग ALTERNATIVES FOR FIVE INFERNAL BEINGS ॐ २०. [प्र. ] पंच भंते ! नेरइया नेरइयप्पवेसणए णं पविसमाणा किं रयणप्पभाए होज्जा ? पुच्छा। [उ. ] गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा ७। म २०. [प्र. ] भगवन् ! पाँच नैरयिक जीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि पृच्छा। म [उ. ] गांगेय ! रत्नप्रभा में होते हैं, यावत् अधःसप्तम-पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। (इस प्रकार - असंयोगी सात भंग होते हैं।) 卐 20. [Q.] Bhante ! When five jivas (souls) enter the infernal realm do they get born in the first hell (Ratnaprabha Prithvi) or the second hell - (Sharkaraprabha Prithvi) or ... and so on up to... the seventh hell (Adhah-saptam Prithvi)? (Ans.] Gangeya ! All the five together get born either in the first hell (Ratnaprabha Prithvi) or in any other ... and so on up to... the seventh hell (Adhah-saptam Prithvi). (This way the number of alternative combinations for all five souls as individuals are seven.) पाँच नैरयिकों के द्विसंयोगी ८४ भंग 84 ALTERNATIVES FOR SETS OF TWO २०. (क) अहवा एगे रयण०, चत्तारि सक्करप्पभाए होज्जा १। जाव अहवा एगे रयण०, चत्तारि + अहेसत्तमाए होज्जा ६। अहवा दो रयण० तिण्णि सक्करप्पभाए होज्जा १-७। एवं जाव अहवा दो ॐ रयणप्पभाए, तिण्णि अहेसत्तमाए होज्जा ६ = १२। अहवा तिण्णि रयण०, दो सक्करप्पभाए होज्जा ॐ १-१३। एवं जाव अहेसत्तमाए होज्जा ६ = १८। अहवा चत्तारि रयण०, एगे सक्करप्पभाए होज्जा १-१९। एवं जाव अहवा चत्तारि रयण०, एगे अहेसत्तमाए होज्जा ६ = २४। अहवा एगे सक्कर०, ॐ चत्तारि वालुयप्पभाए होज्जा १। एवं जहा रयणप्पभाए समं उवरिमपुढवीओ चारियाओ तहा सक्करप्पभाए ॥ वि समं चारेयवाओ जाव अहवा चत्तारि सक्करप्पभाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा २०। एवं एक्केक्काए समं ॐ चारेयवाओ जाव अहवा चत्तारि तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा ८४। २०. (क) (द्विकसंयोगी ८४ भंग-)(१) अथवा एक रत्नप्रभा में और चार शर्कराप्रभा में होते हैं; (२-६) यावत अथवा एक रत्नप्रभा में और चार अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं। (इस प्रकार रत्नप्रभा के साथ १-४ शेष पृथ्वियों का योग करने पर ६ भंग होते हैं।) (१) अथवा दो रत्नप्रभा में और तीन शर्कराप्रभा में होते हैं; (२-६) इसी प्रकार यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में और तीन अधःसप्तम-पृथ्वी में ॐ होते हैं। (यों २-३ से ६ भंग होते हैं।) (१) अथवा तीन रत्नप्रभा में और दो शर्कराप्रभा में होते हैं। 5२-६ इसी प्रकार यावत् अथवा तीन रत्नप्रभा में और दो अधःसप्तम-पृथ्वी में होते हैं। (यों ३-२ से ६ ॥ भंग होते हैं।) (१) अथवा चार रत्नप्रभा में और एक शर्कराप्रभा में होता है, (२-६) यावत् अथवा 卐 चार रत्नप्रभा में और एक अधःसप्तम-पृथ्वी में होता है। (इस प्रकार ४-१ से ६ भंग होते हैं। यों है 5555 | नवम शतक : बत्तीसवाँ उद्देशक (377) Ninth Shatak : Thirty Second Lesson 步步步步步步步岁岁岁岁岁岁岁岁%%%%%%%% % %% %%% %% %% Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002904
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages664
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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