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________________ தமிழத*****************சுமி******H (ग) अहवा एगे रयणप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा १५ अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए होज्जा १६ | अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा १७ । जाव अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे वालुयप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा १८-१९। अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा २०। जाव अहवा एगे 5 सक्करप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा, २१-२२ अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे 卐 धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा २३ | अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा फ्र फ्र फ्र २४ । अहवा एगे सक्करप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा २५ । சு (घ) अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए होज्जा २६ । अहवा एगे 5 ॐ वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए होज्जा २७| अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे पंकप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा २८ | अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा २९ । अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा ३०| अहवा एगे वालुयप्पभाए, एगे तमाए, असत्तमाए होज्जा ३१ । अहवा एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए होज्जा ३२ । अहवा एगे पंकप्पभाए, एगे धूमप्पभाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा ३३ । अहवा एगे पंकप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा ३४ | अहवा एगे धूमप्पभाए, एगे तमाए, एगे अहेसत्तमाए होज्जा ३५ । ८४ । एगे १८. [ प्र. ] भगवन् ! तीन नैरयिक नैरयिक- प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं ? अथवा यावत् अधः सप्तम- पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं ? [ उ. ] गांगेय ! वे तीन नैरयिक (एक साथ) रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं, अथवा यावत् अधः सप्तम में उत्पन्न होते हैं। 5 卐 5 (क) (१) अथवा एक रत्नप्रभा में और दो शर्कराप्रभा में; अथवा (२-३-४-५-६ नरक) यावत् एक रत्नप्रभा में और दो अधः सप्तम पृथ्वी में उत्पन्न होते हैं। (इस प्रकार १-२ का रत्नप्रभा के साथ अनुक्रम से दूसरे नरकों के साथ संयोग करने से छह भंग होते हैं) । (१) अथवा दो नैरयिक रत्नप्रभा में 5 और एक शर्कराप्रभा में उत्पन्न होते हैं । (२-३-४-५-६) अथवा यावत् दो जीव रत्नप्रभा में और एक अधः सप्तम पृथ्वी में होता है। ( इस प्रकार २-१ के भी पूर्ववत् ६ भंग होते हैं) । (१) अथवा एक शर्कराप्रभा में और दो बालुकाप्रभा में होते हैं, (२ - ३ - ४ - ५) अथवा यावत् एक शर्कराप्रभा में और दो फ्र अधः सप्तम - पृथ्वी में होते हैं। (इस प्रकार शर्कराप्रभा के साथ १-२ के पाँच भंग होते हैं) । (१) अथवा दो शर्कराप्रभा में और एक बालुकाप्रभा में होता है, अथवा (२-३-४-५) यावत् दो शर्कराप्रभा में और एक अधः सप्तम - पृथ्वी में उत्पन्न होता है । ( इस प्रकार २ - १ के पूर्ववत् पाँच भंग होते हैं) । जिस प्रकार फ्र शर्कराप्रभा की वक्तव्यता कही, उसी प्रकार सातों नरकों की वक्तव्यता यावत् दो तमः प्रभा में और एक तमस्तमः प्रभा में होता है, यहाँ तक जानना चाहिए। ( इस प्रकार ६ +६+५+५ २२ तथा ४-४, ३- ३, २ -२, १-१ = कुल ४२ भंग हुए) 卐 फ्र फ्र 卐 卐 भगवती सूत्र (३) (ख) अथवा (१) एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और एक बालुकाप्रभा में (२) अथवा एक रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में और एक पंकप्रभा में होता है । अथवा ( ३ - ४ - ५ ) यावत् एक रत्नप्रभा में 卐 Bhagavati Sutra (3) (362) சுதத்தமிழததததததி*****************மிதிமி Jain Education International फफफफफफफफ 卐 For Private & Personal Use Only 5 5 卐 फ्र 5 www.jainelibrary.org
SR No.002904
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages664
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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