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४२. [ प्र. २ ] तस्स णं भंते! सिस्सा वि सिज्झति जाव अंतं करेंति ?
[ उ. ] हंता, सिज्झंति जाव अंतं करेंति ।
४२. [ प्र. २ ] भंते ! क्या उन सोच्चाकेवली के शिष्य भी सिद्ध होते हैं यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं ?
[ उ. ] हाँ, गौतम ! वे भी सिद्ध, बुद्ध होते हैं, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं ।
42. [Q. 2] Bhante ! Do his disciples also become Siddha (perfected soul) and so on up to... end all misery?
[Ans.] Yes, Gautam ! His disciples also become Siddha (perfected soul)... and so on up to ... end all misery.
४२. [ प्र. ३ ] तस्स णं भंते ! पसिस्सा वि सिज्यंति जाव अंतं करेंति ?
[ उ. ] एवं चेव जाव अंतं करेंति ।
४२. [ प्र. ३ ] भगवन् ! क्या उनके प्रशिष्य भी सिद्ध होते हैं, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करते हैं ? [ उ. ] हाँ ! वे भी सिद्ध-बुद्ध हो जाते हैं, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं।
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42. [Q. 3] Bhante ! Do disciples of his disciples also become Siddha (perfected soul )... and so on up to ... end all misery ?
[Ans.] Yes, Gautam ! Disciples of his disciples also become Siddha (perfected soul )... and so on up to... end all misery.
४३. से णं भंते ! किं उड्ढं होज्जा ? जहेव असोच्चाए (सु. ३०) जाव तदेक्कदेसभाए होज्जा ।
४३. भंते ! वे सोच्चाकेवली ऊर्ध्वलोक में होते हैं, अधोलोक में होते हैं और तिर्यक्लोक में भी होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । जैसे (सू. ३० में ) असोच्चाकेवली के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार यहाँ भी जानना चाहिए। यावत् वे अढाई द्वीप समूह के एक भाग में होते हैं, यहाँ तक कहना चाहिए।
43. [Q.] Bhante ! Do such individuals (Sochcha Kevali) exist in the upper world (Urdhva-lok), the lower world (Adho-lok) or the middle world (Tiryak-lok)? The answer to this question is same as mentioned about Asochcha Kevali (aphorism 30 )... and so on up to ... they also exist in Adhai Dveep (two and a half continents) and a portion of oceans.
४४. [ प्र. ] ते णं भंते! एगसमएणं केवइया होज्जा ?
[ उ. ] गोयमा ! जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा,
उक्कोसेणं अट्ठसयं - १०८ ।
सेट्टेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ - सोच्चा णं केवलिस्स वा जाव केवलिउवासियाए वा जाव अत्थेगइए केवलनाणं उप्पाडेज्जा, अत्थेगइए केवलनाणं नो उप्पाडेज्जा ।
सेवं भंते! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरइ |
भगवती सूत्र (३)
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॥ नवमसयस्स इगतीसइमो उद्देसो ॥
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Bhagavati Sutra (3)
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