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|चित्र-परिचय 17
Illustration No. 17 असोच्चा केवली केवली की देशना सुने बिना ही जिस जीव को केवलज्ञान की प्राप्ति हो जाती है उसे असोच्चा केवली कहते हैं। सर्व प्रथम किसी संन्यासी तापस आदि अन्य मत वाले जीव को तप के प्रभाव से विभंगज्ञान उत्पन्न होता है। वह अपने इस विभंग ज्ञान से अढ़ाई द्वीप में स्थित तीर्थंकर और उनके साधु-साध्वियों को देखता है और उन पर श्रद्धा करता है। इसी श्रद्धा से उसकी मिथ्यादृष्टि
सम्यग्दृष्टि में परिवर्तित हो जाती है और वह सम्यक्त्व प्राप्त करता है। जिसके फलस्वरूप उसका म विभंगज्ञान अवधिज्ञान में परिणत हो जाता है। परिणाम की विशुद्धि बढ़ती है। धर्मध्यान, शुक्लध्यान ॐ में परिवर्तित होता है और गुणस्थान आरोहण करते-करते वह मोहनीय कर्म को क्षीण करते हुए
ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय एवं अंतराय कर्म का क्षय करता है और केवलज्ञान-केवलदर्शन को प्राप्त करता है। असोच्चा केवली किसी को दीक्षा भी नहीं देते हैं। ये सिर्फ पुरुष और पुरुष नपुंसक होते हैं। जो अन्यलिंग में सिद्ध होते हैं।
-शतक 9, उ. 31, सूत्र 26-31
SELF-ENLIGHTENED OMNISCIENT
An aspirant who attains omniscience even without hearing the sermon ofan omniscient is called Ashrutva Kevali (self-enlightened omniscient). The beginning of the process is that a monk or hermit acquires Vibhang Jnana (pervert knowledge) as a result of his austerities. With the help of this knowledge he sees a Tirthankar and his disciples somewhere in Adhai-dveep and develops faith in him. This faith turns his unrighteousness into righteousness and he attains Samyaktva. As a consequence his Vibhang Inana turns into Avadhi Jnana and his spiritual purity increases continuously. Pious meditation evolves into pure higher meditation (Shukla Dhyan). He then progresses on the path of Gunasthan. He gradually destroys deluding karmas, knowledge and faith obscuring karmas as well as power hindering karmas. This is when he attains omniscience. A self-enlightened omniscient does not initiate anyone. As a rule they are either masculine or masculineneuter).
- Shatak-9, lesson-31. Sutra-26-31
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