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குழிததததததததததி*************தமிழ*****
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Bhante
25. Q. 1] 5 (adhyavasaaya) he has ?
[Ans.] Gautam ! He has innumerable kinds of mental activity (adhyavasaaya).
२५. [प्र.२ ] ते णं भंते! किं पसत्था अप्पसत्था ?
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[ उ. ] गोयमा ! पसत्था, नो अप्पसत्था ।
! How many kinds of mental activity
२५. [ प्र. २ ] भगवन् ! उसके वे अध्यवसाय प्रशस्त होते हैं या अप्रशस्त ?
25. [Q. 2] Bhante
5 (prashast) or ignoble ?
[ उ. ] गौतम ! वे प्रशस्त होते हैं, अप्रशस्त नहीं होते ।
[Ans.] Gautam ! They are noble and not ignoble.
विवेचन : विशेषार्थ - (१५) 'तिसु विसुद्धलेसासु होज्ज' - प्रशस्त भावलेश्या होने पर ही सम्यक्त्वादि प्राप्त होते 5 हैं, अप्रशस्त लेश्याओं में नहीं । ( १६ ) तिसु सुहोज्ज - विभंगज्ञानी को सम्यक्त्व प्राप्त होते ही उसके मति - अज्ञान, श्रुत- अज्ञान और विभंगज्ञान; ये तीनों अज्ञान, (मति - श्रुतावधि - ) ज्ञानरूप में परिणत हो जाते हैं । ( १७ ) णो अजोगी होज्ज - अवधिज्ञानी को अवधिज्ञान काल में अयोगी अवस्था प्राप्त नहीं होती । (१८) ज्ञानोपयोग - साकारोपयोग अर्थात् ज्ञान और अनाकारोपयोग अर्थात् ज्ञानोपयोग से पूर्व होने वाला दर्शन ( निराकार ज्ञान ) । (१९) वज्रऋषभनाराच संहनन ही क्यों ? - यहाँ जो अवधिज्ञानी के लिए वज्रऋषभनाराच संहनन का कथन किया गया है, वह आगे प्राप्त होने वाले केवलज्ञान की अपेक्षा से समझना चाहिए, क्योंकि केवलज्ञान की प्राप्ति वज्रऋषभनाराच संहनन वालों को ही होती है। जिस प्रकार डोमेस्टिक बिजली के साधारण तारों में से हाइवोल्टेज विद्युत प्रवाहित नहीं हो सकती, उसके लिए तार आदि सभी विद्युत उपकरण विशेष शक्ति के होते हैं । इसी प्रकार विशिष्ट आध्यात्मिक ऊर्जा प्रवाहित करने के लिए संहनन भी सुदृढ़ होने चाहिए। चार घाति कर्मों का क्षय करने के लिए अत्यधिक विशिष्ट आत्म-ऊर्जा की जरूरत होती है। (२३) सवेदी आदि का तात्पर्य - विभंगज्ञान से अवधिज्ञान काल में साधक सवेदी होता है, क्योंकि उस दशा में उसके वेद का क्षय नहीं होता । विभंगज्ञान से अवधिज्ञान प्राप्त करने की जो प्रक्रिया है, उस प्रक्रिया का स्त्री में स्वभावतः अभाव होता है । अतः सवेदी में वह पुरुषवेदी एवं कृत्रिमनपुंसकवेदी होता है। (२४) सकसाई होज्ज - विभंगज्ञान एवं अवधिज्ञान के काल में कषाय क्षय नहीं होता, किन्तु संज्वलनकषाय होता है, क्योंकि विभंगज्ञान के अवधिज्ञान में परिणत होने पर वह अवधिज्ञानी साधक जब चारित्र अंगीकार कर लेता है, तब उसमें संज्वलन के ही क्रोधादि चार कषाय होते हैं । (२५) प्रशस्त अध्यवसायस्थान ही क्यों ? - विभंगज्ञान से अवधिज्ञान की प्राप्ति अप्रशस्त अध्यवसाय वाले को नहीं होती, इसलिए अवधिज्ञानी में प्रशस्त अध्यवसायस्थान ही होते हैं ।
भगवती सूत्र (३)
Are all these kinds of his mental activity noble
Elaboration (aphorisms-) 15. 'tisu visuddhalesasu hojja'righteousness (samyaktva) and other entailing qualities can only be attained when the soul-complexion is pure and not when it is impure. 16. 'tisu naanesu hojja'-the moment a Vibhanga jnani (one having pervert knowledge) attains righteousness his distorted sensual
Bhagavati Sutra (3)
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