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(Ans.) Gautam ! In terms of time Taijas-sharira-prayoga-bandh (bondage related to fiery body formation) is said to be of two types— (1) anaadi-aparyavasit (without a beginning and without an end) and (2) anaadi-saparyavasit (without a beginning and with an end).
९५. [प्र. ] तेयासरीरप्पयोगबंधंतरं णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ? [उ. ] गोयमा ! अणाईयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं, अणाईयस्स सपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं। ९५. [प्र. ] भगवन् ! तैजस्शरीर-प्रयोगबन्ध का अन्तर, कालतः कितने काल का होता है।
[उ. ] गौतम ! (इसके कालतः दो प्रकारों में से) न तो अनादि-अपर्यवसित तैजसशरीर-प्रयोगबन्ध का अन्तर है और न ही अनादि सपर्यवसित तैजस्शरीर-प्रयोगबन्ध का अन्तर है।
95. [Q.] What is the intervening period between one bondage and the next in case of the fiery body (taijas sharira)?
[Ans.] Gautam ! This intervening period does not exist in Taijas___sharira-prayoga-bandh. either of anaadi-aparyavasit type or anaadisaparyavasit type.
९६. [प्र. ] एएसि णं भंते ! जीवाणं तेयासरीरस्स देसबंधगाणं अबंधगाण य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा ?
[उ. ] गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा तेयासरीरस्स अबंधगा, देसबंधगा अणंतगुणा।
९६. [प्र. ] भगवन् ! तैजस्शरीर के इन देशबन्धक और अबन्धक जीवों में कौन, किससे कम, ॐ बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
[उ. ] गौतम ! तैजस्शरीर के अबन्धक (सिद्ध) जीव सबसे थोड़े हैं, उनसे देशबन्धक (सर्व संसारी) जीव अनन्तगुणे हैं।
96. (Q.) Bhante ! Of these beings with bondage related to fiery (Taijassharira-bandh) which are comparatively less, more, equal and much
more-those with bondage of a part (desh-bandhak) or those with nobondage (abandhak) at all ?
[Ans.] Gautam ! Minimum are those with no bondage at all and infinite times more than these are those with bondage of a part (deshbandh).
विवेचन : तैजसशरीर-प्रयोगबन्ध का स्वरूप-जसशरीर अनादि है, इसलिए इसका सर्वबन्ध नहीं होता। तैजस्शरीर-प्रयोगबन्ध अभव्य-जीवों के अनादि-अपर्यवसित (अन्तरहित) होता है, जबकि भव्य जीवों के अनादि-सपर्यवसित (सान्त) होता है। तैजस्शरीर सर्व संसारी जीवों को सदैव रहता है, इसलिए तैजसशरीर-प्रयोगबन्ध का अन्तर नहीं होता। तैजस्शरीर के अबन्धक केवल सिद्ध जीव ही होते हैं, शेष सभी संसारी जीव इसके देशबन्धक हैं, इस दृष्टि से सबसे अल्प इसके अबन्धक बतलाए गये हैं, उनसे अनन्त
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| भगवती सूत्र (३)
(248)
Bhagavati Sutra (3)
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