________________
14.1Q.] Bhante ! What is this Allikaapan-bandh (seamless bondage)?
[Ans.] Gautam ! Allikaapan-bandh (seamless bondage) is said to be of our types-(1) Shleshana-bandh (agglutinative bondage), (2) Uchchayavandh (accumulative bondage), (3) Samuchchaya-bandh (organized iccumulative bondage), and (4) Samhanan-bandh (integrative bondage).
१५. [प्र. ] से किं तं लेसणाबंधे ?
[उ. ] लेसणाबंधे, जं णं कुड्डाणं कुट्ठिमाणं खंभाणं पासायाणं कट्ठाणं चम्माणं घडाणं पडाणं कडाणं छुहा-चिक्खल्ल-सिलेस-लक्ख-महुसित्थमाइएहिं लेसणएहिं बंधे समुप्पज्जइ, जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं, से त्तं लेसणाबंधे।
१५. [प्र. ] भगवन् ! श्लेषणाबन्ध किसे कहते हैं ? _ [उ. ] गौतम ! श्लेषणाबन्ध इस प्रकार का है-जो कुड्यों (भित्तियों) का, कुट्टिमों (आँगन के फर्श) का, स्तम्भों का, प्रासादों का, काष्ठों का, चर्मों (चमड़ों) का, घड़ों का, वस्त्रों का और चटाइयों (कटों) का; चूना, कीचड़, श्लेष (गोंद आदि चिपकाने वाले द्रव्य, अथवा वज्रलेप), लाख, मोम आदि श्लेषण द्रव्यों से बन्ध सम्पन्न होता है, वह श्लेषणाबन्ध कहलाता है। यह बन्ध जघन्य अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्ट संख्यातकाल तक रहता है। यह श्लेषणाबन्ध का कथन हुआ।
15. [Q.] Bhante ! What is this Shleshana-bandh (agglutinative bondage)?
[Ans.] Gautam ! Shleshana-bandh (agglutinative bondage) takes place when walls (kudya), floors (kuttim), pillars, pieces of wood, pieces of leather, pitchers, clothes, and mats (kut) are joined (plastered, adhered or pasted) with the help of lime, soil, adhesive, shellac, wax or any other adhesive. This bondage lasts for a minimum of Antarmuhurt (less than 48 minutes) and a maximum of countable period of time. This concludes the description of Shleshana-bandh (agglutinative bondage).
१६. [प्र. ] से किं तं उच्चयबंधे ?
[उ. ] उच्चयबंधे, जं णं तणरासीण वा कट्टरासीण वा पत्तरासीण वा तुसरासीण वा भुसरासीण वा गोमयरासीण वा अवगररासीण वा उच्चएणं बंधे समुप्पज्जइ, जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जं कालं। से त्तं उच्चयबंधे।
१६. [प्र. ] भगवन् ! उच्चयबन्ध किसे कहते हैं ?
[उ. ] गौतम ! तृणराशि, काष्ठराशि, पत्रराशि, तुषराशि, भूसे का ढेर, गोबर (या उपलों) का ढेर अथवा कूड़े-कचरे का ढेर, इनका ऊँचे ढेर (पुंज = संचय) रूप से जो बन्ध सम्पन्न होता है, उसे 'उच्चयबन्ध' कहते हैं। यह बन्ध जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त तक और उत्कृष्टतः संख्यातकाल तक रहता है। इस प्रकार उच्चयबन्ध का कथन किया गया है।
अष्टम शतक : नवम उद्देशक
(203)
Eighth Shatak : Ninth Lesson
55555555555555555555555555555555555a
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org