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________________ 35555)))))))))))))))))5555555555558 ) )) नागारागागाभा )) )) गागनगम 听听听听听听听听听听听听 म बाँधा' इस प्रकार के ४ भंग हैं, वे इसमें नहीं बन सकते। जो ४ भंग बन सकते हैं, उनका आशय इस प्रकार म है-१. 'प्रथम भंग-बाँधा था, बाँधता है, बाँधेगा'-यह भंग यथाख्यातचारित्र-प्राप्ति से दो समय पहले तक : सर्वसंसारी जीवों में पाया जाता है। क्योंकि भूतकाल में उन्होंने साम्परायिक कर्म बाँधा था, वर्तमान में बाँधते हैं । और भविष्य में भी यथाख्यातचारित्र-प्राप्ति के पहले तक बाँधेगे। यह प्रथम भंग अभव्य जीव की अपेक्षा भी है घटित हो सकता है। २. द्वितीय भंग-बाँधा था, बाँधता है, नहीं बाँधगा-यह भंग भव्य जीव की अपेक्षा से है। मोहनीय कर्म के क्षय से पहले उसने साम्परायिक कर्म बाँधा था, वर्तमान में बाँधता है, और आगामीकाल में मोहक्षय की अपेक्षा नहीं बाँधेगा। ३. तृतीय भंग-बाँधा था, नहीं बाँधता, बाँधेगा-यह भंग उपशमश्रेणी प्राप्त जीव ॐ की अपेक्षा है। उपशमश्रेणी करने के पूर्व उसने साम्परायिक कर्म बाँधा था, वर्तमान में उपशान्तमोह होने से नहीं 5 बाँधता और उपशम श्रेणी से गिर जाने पर आगामीकाल में पुनः बाँधेगा। ४. चतुर्थ भंग- 'बाँधा था, नहीं बाँधता, नहीं बाँधेगा'-यह भंग क्षपक श्रेणी-प्राप्त क्षीण-मोह जीव की अपेक्षा से है। मोहनीय कर्मक्षय के पूर्व उसने साम्परायिक कर्म बाँधा था, वर्तमान में मोहनीय कर्म का क्षय हो जाने से नहीं बाँधता और तत्पश्चात् मोक्ष प्राप्त है हो जाने से आगामीकाल में नहीं बाँधेगा। साम्परायिक कर्मबन्धक के विषय में सादि-सान्त आदि ४ विकल्प-पूर्ववत् सादि-सपर्यवसित (सान्त) आदि ४ विकल्पों को लेकर साम्परायिक कर्मबन्ध के विषय में प्रश्न उठाया गया है। इन चार भंगों में से सादि- ॥ अपर्यवसित-(अनन्त) को छोड़कर शेष प्रथम, तृतीय और चतुर्थ भंगों से जीव साम्परायिक कर्म बाँधता है। जो जीव उपशम श्रेणी से गिर गया है और आगामीकाल में पुनः उपशमश्रेणी या क्षपक श्रेणी को अंगीकार करे उसकी अपेक्षा प्रथम भंग घटित होता है। जो जीव प्रारम्भ में ही क्षपक श्रेणी करने वाला है, उसकी अपेक्षा 1 अनादि-सपर्यवसित नामक ततीय भंग घटित होता है, तथा अभव्य जीव की अपेक्षा अनादि-अपर्यवसित नामक 卐 चतुर्थ भंग घटित होता है। सादि-अपर्यवसित नामक दूसरा भंग किसी भी जीव में घटित नहीं होता। यद्यपि 5 उपशमश्रेणी से भ्रष्ट जीव सादि साम्परायिक बन्धक होता है, किन्तु वह कालान्तर में अवश्य मोक्षगामी होता है, उस समय उसमें साम्परायिक कर्म का व्यवच्छेद हो जाता है, इसलिए अन्त रहितता उसमें घटित नहीं होती। (वृत्ति, पत्रांक ३८८) ___Elaboration-In the aforesaid thirteen aphorisms (10-22) bondage of Iryapathik-karma and Samparayik-karma has been discussed from six angles 1. Which living being belonging to which one of the four genuses acquires bondage of Iryapathik-karma and Samparayik-karma ? 2. Which of the genders, including male, female and eunuch acquires * i the bondage ? 3. Which of the non-genderic being or beings including streepashchaatkrit jiva, and napumsak-pashchaatkrit jiva acquires bondage ? ____4. Bondage of the two karmas during three periods (past, present and future). 5. Bondage related to the four alternatives of end and beginning. 6. Bondage relative to part and whole. अष्टम शतक : अष्टम उद्देशक (173) Eighth Shatak: Eighth Lesson )) IR PIPI ) ))) )) ) )) )) ))) )) )) ज) 954555 卐फ़ ))))))))558 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002904
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages664
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size21 MB
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