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के निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थी की आराधकता STEADFASTNESS OF ASCETICS
७. [प्र. १ ] निग्गंथेण य गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविद्वेणं अन्नयरे अकिच्चट्ठाणे पडिसेविए, फ़ तस्स णं एवं भवति-इहेव ताव अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि पडिक्कमामि निंदामि गरिहामि विउट्टामि
विसोहेमि अकरणयाए अदभुट्टेमि, अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जामि, तओ पच्छा थेराणं अंतियं + आलोएस्सामि जाव तवोकम्मं पडिवज्जिस्सामि। से य संपट्ठिए, असंपत्ते, थेरा य पुवामेव अमुहा सिया, से मणं भंते ! किं आराहए विराहए ?
[उ. ] गोयमा ! आराहए, नो विराहए। म ७. [प्र. १ ] गृहस्थ के घर आहार ग्रहण करने की बुद्धि से प्रविष्ट निर्ग्रन्थ द्वारा किसी अकृत्य
में दोषरूप किसी अकार्य) स्थान का प्रतिसेवन (दोष-सेवन) हो गया हो और तत्क्षण उसके # मन में ऐसा विचार हो कि प्रथम मैं यहीं इस अकृत्य स्थान की आलोचना, प्रतिक्रमण, आत्म-निन्दा म (पश्चात्ताप) और गर्दा करूँ; उसके अनुबन्ध का छेदन करूँ, इस (पाप-दोष से) विशुद्ध बनूँ, पुनः ऐसा 2 अकृत्य न करने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध होऊँ; और यथोचित प्रायश्चित्तरूप तपःकर्म स्वीकार कर लूँ। । तत्पश्चात् स्थविरों के पास जाकर आलोचना करूँगा, यावत् प्रायश्चित्तरूप तपःकर्म स्वीकार कर लूँगा।
(ऐसा विचार कर) वह निर्ग्रन्थ, स्थविर मुनियों के पास जाने के लिए रवाना हुआ; किन्तु स्थविर मुनियों # के पास पहुँचने से पहले ही वे स्थविर (वातादि दोष के प्रकोप से) मूक हो जाएँ (बोल न सकें अर्थात् के प्रायश्चित्त न दे सकें) तो हे भगवन् ! वह निर्ग्रन्थ आराधक है या विराधक है ? 2 [उ. ] गौतम ! वह (निर्ग्रन्थ) आराधक है, विराधक नहीं।
7. [Q. 1] Bhante ! Suppose a nirgranth (a male ascetic) goes to a householder to beg alms and falls victim to a lapse (transgression of F basic code of conduct). He at once becomes aware of his fault and thinks F - 'First of ali, right at this spot, I should appraise my action (alochana), & critically review it (pratikraman), self-censure (atma-ninda) and
ondemn (garha) it; shear the acquired bondage, free myself of the fault, take a vow not to repeat such fault in future, and court suitable penance for atonement. Then I should proceed to senior ascetics, appraise my action (alochana) ... and so on up to ...and court suitable penance for atonement.' Having thought like this he sets out to meet senior ascetics but before he reaches his destination those senior ascetics become mute (due to some ailment and are unable to prescribe suitable atonement).
Bhante ! Is such a nirgranth (a male ascetic) steadfast (araadhak) or R faltering in conduct (viraadhak)?
(Ans.) Gautam ! He (that ascetic) is steadfast and not faltering in conduct.
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मनाना नागनानानाना
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अष्टम शतक : छठा उद्देशक
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Eighth Shatak : Sixth Lesson
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