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i ३. [प्र. ] समणोवासगस्स णं भंते ! तहारूवं अस्संजयअविरयपडिहयपच्चक्खायपावकम्मं फासुएण
वा अफासुएण वा एसणिज्जेण वा अणेसणिज्जेण वा असण-पाण जाव किं कज्जइ ? _[उ. ] गोयमा ! एगंतसो से पावे कम्मे कज्जइ, नत्थि से काई निज्जरा कज्जइ।
३. [प्र. ] भगवन् ! तथारूप असंयत, अविरत, पापकर्मों का जिसने निरोध और प्रत्याख्यान नहीं किया; उसे प्रासुक या अप्रासुक, एषणीय या अनेषणीय अशन-पानादि द्वारा प्रतिलाभित करते हुए श्रमणोपासक को क्या फल प्राप्त होता है ?
[ उ. ] गौतम ! उसे एकान्त पापकर्म होता है, किसी प्रकार की निर्जरा नहीं होती।
3. IQ.) What benefit does a Shramanopasak derive by offering faultfree or faulty and acceptable or unacceptable staple food, liquids ... and so on up to ... savoury food to one who is undisciplined and unrestrained and who has neither abandoned nor renounced sinful activity (as described in Agams)?
(Ans.] Gautam ! By doing so he exclusively acquires demeritorious karmas (paap karma) and sheds no karmas at all. विवेचन : 'तथारूप' का आशय-पहले ॐ
। 'तथारूप' का आशय है-जैनागमों में वर्णित श्रमण के वेश और चारित्रादि श्रमणगुणों से युक्त। तथा तीसरे सूत्र में असंयत, अविरत आदि विशेषणों से युक्त 'तथारूप' शब्द का आशय यह है कि उस उस अन्यतीर्थिक वेष से युक्त योगी, संन्यासी, बाबा आदि, पापकर्मों के निरोध और प्रत्याख्यान से रहित है। ____ पडिलाभेमाणस्स' शब्द गुरुबुद्धि से मोक्षलाभ की दृष्टि से दान देने के फल का सूचक है। अभावग्रस्त, पीड़ित, दुःखित, रोगग्रस्त या अनुकम्पनीय (दयनीय) व्यक्ति या अपने पारिवारिक, सामाजिक जनों को
औचित्यादि रूप में देने में ‘पडिलाभे' शब्द नहीं आता, अपितु वहाँ ‘दलयइ' या 'दलेज्जा' शब्द आता है। तात्पर्य यह है कि अनुकम्पापात्र को दान देने या औचित्यदान आदि के सम्बन्ध में निर्जरा की अपेक्षा यहाँ चिन्तन नहीं । किया जाता, अपितु पुण्यलाभ का विशेष रूप से विचार किया जाता है।
प्रासुक और अप्रासुक का अर्थ सामान्यतया निर्जीव (अचित्त) और सजीव (सचित्त)। एषणीय का अर्थ है-- । आहार सम्बन्धी उद्गमादि दोषों से रहित-निर्दोष और अनेषणीय-दोषयुक्त-सदोष। ___'बहुत निर्जरा, अल्पतर पाप' का आशय-अनेषणीय आहार देने में बहुत निर्जरा-अल्पतर पाप का यहाँ
आशय है किसी विशेष विषम परिस्थिति में श्रमण को अनेषणीय आहार लेना पड़े और श्रमणोपासक को भी उनकी जीवनरक्षा हेतु देना पड़े (इस दोष-सेवन का प्रायश्चित्त लेने की भावना रखते हुए) तो उस परिस्थिति में 4 विवेकी श्रावक का ‘बहुत निर्जरा और अल्प पाप' होता है। (अभयदेववृत्ति, पत्रांक ३७३)
Elaboration—Tatharupa-In the first two aphorisms this means conforming to the description of code of conduct and dress as described in 6 Jain Agams. In the third one due to the additional adjectives Fundisciplined and unrestrained it means members of various heretic Fi sects who do not renounce, such as yogi, sanyasi, baba, etc.
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| अष्टम शतक: छटा उद्देशक
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Eighth Shatak: Sixth Lesson
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