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: 2.[Q. 1] Bhante ! Do the belongings so stolen become non-belongings i for that shravak who has accepted Sheel-vrats : (instructive or
complimentary vows of spiritual discipline), Gunavrats (restraints that reinforce the practice of anuvrats), Viraman-vrats (five minor vows), Pratyakhyan (codes of renouncing) and Paushadhopavas (partial ascetic vow and fasting). (In other words while performing Samayik do his belongings still remain his ?) ____ [Ans.] Yes, Gautam ! Those belongings become non-belongings for him.
२. [प्र. २ ] से केणं खाइ णं अट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ 'सभंडं अणुगवेसइ नो परायगं भंडं अणुगवेसइ' ? __[उ. ] गोयमा ! तस्स णं एवं भवति-णो मे हिरण्णे, नो मे सुवण्णे, नो मे कंसे, नो मे दूसे, नो मे विउलधण-कणग-रयण-मणि-मोत्तिय-संख-सिल-प्पवाल-रत्तरयणमाइए संतसारसावएज्जे, ममत्तभावे पण से अपरिणाए भवति, से तेणटटेणं गोयमा ! एवं वच्चइ-'सभंडं अणगवेसह नो परायगं भंड अणुगवेसइ।
२. [प्र. २ ] भगवन् ! (जब वह भाण्ड उसके लिए अभाण्ड हो जाता है,) तब आप ऐसा क्यों कहते हैं कि वह श्रावक अपने भाण्ड का अन्वेषण करता है, दूसरे के भाण्ड का अन्वेषण नहीं करता?
[उ. ] गौतम ! सामायिक आदि करने वाले उस श्रावक के मन में ऐसे परिणाम होते हैं, कि हिरण्य (चाँदी) मेरा नहीं है, सुवर्ण मेरा नहीं है, कांस्य (कांसी के बर्तन आदि सामान) मेरा नहीं है, वस्त्र मेरे नहीं हैं तथा विपुल धन, कनक, रत्न, मणि, मोती, शंख, शिला, प्रवाल (मूंगा) एवं रक्तरत्न (पद्मरागादि मणि) इत्यादि विद्यमान सारभूत द्रव्य मेरा नहीं है। किन्तु उसने ममत्वभाव का प्रत्याख्यान नहीं किया है। इसी कारण से, हे गौतम ! मैं ऐसा कहता हूँ कि वह श्रावक अपने भाण्ड का अन्वेषण करता है, दूसरों के भाण्ड (सामान) का अन्वेषण नहीं करता।
2. [Q. 2] Bhante ! (When those belongings become non-belongings for i him), then why do you say that he searches his own belongings and not i those belonging to others ? ___ [Ans.] Gautam ! That shravak performing Samayik and other such
tivities thinks that silver (or things made of it) is not mine, gold is not i mine, bronze is not mine, clothes are not mine, and great wealth i including gold, gems, beads, pearls, conch-shells, stones, coral as well as
precious stones like ruby and other available valuable things are not mine. However he has not renounced the intrinsic fondness (for belonginsgs). That is why, Gautam ! I say that he searches his own belongings and not those belonging to others.
अष्टम शतक : पंचम उद्देशक
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Eighth Shatak: Fifth Lesson
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