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७. [ प्र. ] भगवन् ! हँसता हुआ या उत्सुक होता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों को बाँधता है ? [उ.] गौतम ! सात प्रकार के अथवा आठ प्रकार कर्मों को बाँधता है।
८. इसी प्रकार (नैरयिक से लेकर ) वैमानिक पर्यन्त चौबीस ही दण्डकों के लिए (ऐसा आलापक) कहना चाहिए।
९. जब उपर्युक्त प्रश्न बहुत जीवों की अपेक्षा पूछा जाए, तो उसके उत्तर में समुच्चय जीव और एकेन्द्रिय को छोड़कर कर्मबन्ध से सम्बन्धित तीन भंग (विकल्प) कहने चाहिए।
7. [Q.] Bhante ! While laughing and getting inquisitive how many types of karma species does a living being bind?
[Ans.] Gautam ! He binds seven or eight types of karma species.
8. The same (statement with respect to singular) should be repeated for all the twenty four Dandaks (places of suffering from infernal beings) up to Vaimaniks.
9. When the said question is asked in context of many living beings (with respect to plural) three alternatives about bondage of karmas should be stated with the exception of 'all beings' and 'one-sensed beings'.
विवेचन : तीन भंग - पृथक्त्व सूत्रों (पोहत्तिएहिं ) अर्थात् बहुवचन - सूत्रों (बहुत से जीवों) की अपेक्षा से पाँच एकेन्द्रियों में हास्यादि न होने से ५ स्थावरों के ५ दण्डकों को छोड़कर शेष १९ दण्डकों में कर्मबन्ध-सम्बन्धी तीन भंग होते हैं - ( 9 ) सभी जीव सात प्रकार के कर्म बाँधते हैं, (२) बहुत से जीव ७ प्रकार के कर्म बाँधते हैं और एक जीव ८ प्रकार के कर्म बाँधता है, (३) बहुत से जीव ७ प्रकार के कर्मों को और बहुत से जीव ८ प्रकार के कर्मों को बाँधते हैं। आयुकर्म के बन्ध के समय आठ कर्म और जब आयुकर्म न बँध रहा हो, तब सात कर्मों का बन्ध समझना चाहिए। (वृत्ति पंत्राक २१७)
Elaboration-The three alternatives-As the five types of one-sensed beings are devoid of the faculties of laughter and inquisitiveness these five Dandaks fall under exceptions. Same is true for a general statement about all beings. The remaining nineteen Dandaks have three alternatives about karmic bondage-(1) All beings bind seven types of karmas. (2) Many beings bind seven types of karmas and one being binds eight types of karmas. (3) Many beings bind seven types of karmas and many beings bind eight types of karmas. Eight types of karmas are bound when karma responsible for life-span (ayushya) is bound and seven types of karmas are bound when karma responsible for life-span (ayushya) is not bound. (Vritti, leaf 217)
१०. [ प्र. ] छउमत्थे णं भंते! मणूसे निद्दाएज्ज वा ? पयलाएज्ज वा ?
[उ.] हंता, निद्दाएज्ज वा, पयलाएज्ज वा ।
पंचम शतक : चतुर्थ उद्देशक
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Fifth Shatak: Fourth Lesson
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