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६. [प्र. १ ] जहा णं भंते ! छउमत्थे मणुस्से हसेज वा उस्सुयाएज्ज तहा णं केवली वि हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा?
[उ. ] गोयमा ! नो इणढे समढे।
[प्र. २ ] से केणटेणं भंते ! जाव नो णं तहा केवली हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा ? _[उ.] गोयमा ! ज णं जीवा चरित्तमोहणिज्जकम्मस्स उदएणं हसंति वा उस्सुयायंति वा, से णं केवलिस्स नत्थि, से तेणटेणं जाव नो णं तहा केवली हसेज्ज वा, उस्सुयाएज्ज वा।
६. [प्र. १] भगवन् ! जैसे छद्मस्थ मनुष्य हँसता है तथा उत्सुक होता है, वैसे क्या केवली भी हँसता और उत्सुक होता है ?
[उ. ] गौतम ! छद्मस्थ मनुष्य की तरह केवली न तो हँसता है और न उत्सुक होता है।
[प्र. २ ] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि केवली मनुष्य (छद्मस्थ की तरह) न तो हँसता है और न उत्सुक होता है ?
[उ. ] गौतम ! जीव, चारित्रमोहनीय कर्म के उदय से हँसते हैं या उत्सुक होते हैं, किन्तु वह केवली ॐ भगवान के नहीं है; (उनके चारित्रमोहनीय कर्म का क्षय हो चुका है।) इस कारण से यह कहा जाता है
कि जैसे छद्मस्थ मनुष्य हँसता है अथवा उत्सुक होता है, वैसे केवली मनुष्य न तो हँसता है और न ही
उत्सुक होता है। + 6. [Q. 1] Bhante ! As a person with finite cognition (chhadmasth)
laughs and gets inquisitive, likewise does the omniscient (Kevali) too laugh and get inquisitive?
(Ans.] No, Gautam ! He does not.
[Q. 2] Bhante ! Why is it so that the omniscient (Kevali) neither laughs nor gets inquisitive (like a chhadmasth) ? ___ [Ans.] Gautam ! Living beings laugh and get inquisitive due to fruition of Chaaritra Mohaniya karmas (conduct deluding karmas) but the omniscient (Kevali) is devoid of these (his conduct deluding karmas have already been shed). That is why it is said... and so on up to... the omniscient (Kevali) neither laughs nor gets inquisitive (like a chhadmasth).
७. [प्र. ] जीवे णं भंते ! हसमाणे वा उस्सुयमाणे वा कति कम्मपगडीओ बंधति ? _ [उ. ] गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अट्ठविहबंधए वा।
८. एवं जाव वेमाणिए। ९. पोहत्तिएहिं जीवेगिंदियवज्जो तियभंगो।
भगवती सूत्र (२)
(46)
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Bhagavati Sutra (2)
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