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[उ. ] गोयमा ! केवली णं आरगयं वा पारगयं वा सव्वदूरमूलमणंतियं सदं जाणइ पासइ। ज [प्र. २ ] से केणट्टेणं तं चेव केवली णं आरगयं वा जाव पासइ ?
[उ. ] गोयमा ! केवली णं पुरथिमेणं मियं पि जाणइ, अमियं पि जाणइ; एवं दाहिणेणं म पच्चत्थिमेणं, उत्तरेणं, उडुं, अहे मियं पि जाणइ, अमियं पि जाणइ, सव्वं जाणइ केवली, सव्वं पासइ
केवली, सब्बतो जाणइ पासइ, सव्वकालं जाणइ पासइ, सव्वभावे जाणइ केवली, सव्वभावे पासइ केवली, ॐ अणंते नाणे केवलिस्स, अणंते दंसणे केवलिस्स, निबुडे नाणे केवलिस्स, निबुडे दंसणे केवलिस्स। से तेणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ।
४.[प्र.१] भगवन ! जैसे छद्मस्थ मनष्य आरगत शब्दों को सनता है. किन्त पारगत शब्दों को E नहीं सुनता; वैसे ही, क्या केवली (केवलज्ञानी) भी आरगत शब्दों को ही सुन पाता है, पारगत शब्दों ॐ को नहीं सुन पाता?
___[उ. ] गौतम ! केवली मनुष्य तो आरगत, पारगत अथवा समस्त दूरवर्ती (दूर तथा अत्यन्त दूर के) 卐 और निकटवर्ती (निकट तथा अत्यन्त निकट के) अनन्त (अन्तरहित) शब्दों को जानता और देखता है।
[प्र. २ ] भगवन् ! इसका क्या कारण है कि केवली मनुष्य आरगत, पारगत अथवा यावत् सभी प्रकार के (दूरवर्ती, निकटवर्ती) अनन्त शब्दों को जानता-देखता है? ___ [उ. ] गौतम ! केवली (सर्वज्ञ) पूर्व दिशा की मित वस्तु को भी जानता-देखता है, और अमित वस्तु को भी जानता-देखता है; इसी प्रकार दक्षिण दिशा, पश्चिम दिशा, उत्तर दिशा, ऊर्ध्व दिशा और
अधो दिशा की मित वस्तु को भी जानता-देखता है तथा अमित वस्तु को भी जानता-देखता है। ॐ केवलज्ञानी सब जानता है और सब देखता है। केवली सर्वतः (सब ओर से) जानता-देखता है, केवली + सर्वकाल में, सर्वभावों (पदार्थों) को जानता-देखता है। केवलज्ञानी (सर्वज्ञ) के अनन्त ज्ञान और अनन्त
दर्शन होता है। केवलज्ञानी का ज्ञान और दर्शन निरावरण (सभी प्रकार के आवरणों से रहित) होता है। + हे गौतम ! इसी कारण से ऐसा कहा गया है कि केवली मनुष्य आरगत और पारगत शब्दों को, ॐ यावत् सभी प्रकार के दूरवर्ती और निकटवर्ती शब्दों को जानता-देखता है।
4.[Q. 1] Bhante ! As a chhadmasth hears only those sounds that are within the range of his sense organs (aargat) but not those that are ki beyond the range of his sense organs (paargat), in the same way does an ki omniscient (Kevali) hear only those sounds that are within the range of
his sense organs (aargat) ? Or does he hear even those that are beyond the range of his sense organs (paargat) ?
[Ans.] Gautam ! An omniscient (Kevali) knows and sees the sounds that are within the range of his sense organs (aargat), beyond the range of his sense organs (paargat), and all sounds far and near... and so on up to... infinite (endless) kinds of sounds.
भगवती सूत्र (२)
(44)
Bhagavati Sutra (2)
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