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________________ நிதிதிததமிழழ************து! 卐 கதிமிதித கககககக******** 5 फफफफफफफफफ १२. [ प्र. ] वाउकाए णं भंते ! वाउकायं चेव आणमति वा पाणमति वा ? [उ. ] जहा खंदए तहा चत्तारि आलावगा नेयव्वा - अणेगसतसहस्स० । पुट्ठे उद्दाइ वा । ससरीरी निक्खमइ । १२. [प्र. ] भगवन् ! क्या वायुकाय वायुकाय को ही श्वासरूप में ग्रहण करता है और निःश्वासरूप में छोड़ता है ? [.] गौतम ! इस सम्बन्ध में स्कन्दक परिव्राजक के उद्देशक में कहे अनुसार चार जानना चाहिए - यावत् (१) अनेक लाख बार मरकर, (२) स्पृष्ट हो ( स्पर्श पा) कर, (३) मरता है, और (४) शरीर-सहित निकलता है। 12. [Q.] Bhante ! Do the air-bodied beings inhale and exhale airbodied beings in there respiration? Elaboration—The gist of these 12 aphorism is as follows – ( 1 ) Four types of winds including Ishatpurovaat blow. (2) They blow in all the four cardinal directions and intermediate directions of the Meru Mountain. पंचम शतक: द्वितीय उद्देशक फ्र आलापक 5 [Ans.] Gautam ! In this regard refer to the four statements in the Chapter on Skandak... and so on up to ... (1) dies many hundred thousand 5 times; (2) by being touched; (3) dies and ( 4 ) moves out with body. Jain Education International க 卐 विवेचन : उक्त १२ सूत्रों का निष्कर्ष इस प्रकार है - ( १ ) ईषत्पुरोवात आदि चारों प्रकार की वायु चलती हैं। 5 (२) ये सब सुमेरु से पूर्वादि चारों दिशाओं और ईशानादि चारों विदिशाओं में चलती हैं। (३) ये पूर्व में बहती हैं, तब पश्चिम में भी बहती हैं और पश्चिम में बहती हैं, तब पूर्व में भी । (४) द्वीप और समुद्र में भी ये सब वायु होती हैं। (५) किन्तु जब ये द्वीप में बहती हैं, तब समुद्र में नहीं बहतीं और समुद्र में बहती हैं, तब द्वीप में फ नहीं बहतीं, क्योंकि ये सब एक-दूसरे से विपरीत पृथक्-पृथक् बहती हैं, लवणसमुद्रीय वेला का अतिक्रमण नहीं करतीं। (६) ईषत्पुरोवात आदि वायु हैं और वे तीन समय में तीन कारणों से चलती हैं - (I) जब वायुकाय स्व-स्वभावपूर्वक गति करता है, (II) जब वह उत्तरवैक्रिय से वैक्रिय शरीर बनाकर गति करता है, तथा (III) जब वायुकुमार देव - देवीगण स्व, पर एवं उभय के निमित्त वायुकाय की उदीरणा करते हैं। (७) वायुकाय अचित्त हुए वायुकाय को ही श्वासोच्छ्वास के रूप में ग्रहण करता - छोड़ता है। 25959595959 55 5 5 5 5 9 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5955 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 595959595952 (29) 卐 For Private & Personal Use Only 卐 फ द्वीपीय और समुद्रीय हवाएँ एक साथ नहीं बहतीं - इसका तात्पर्य यह है कि जिस समय अमुक प्रकार की 5 ईषत्पुरोवात आदि वायु चलती है, तब उसी प्रकार की दूसरी ईषत्पुरोवात आदि वायु नहीं चलती। इसका कारण है - वायु के द्रव्यों का स्वभाव एवं सामर्थ्य ऐसा है कि वह समुद्र की वेला का अतिक्रमण नहीं करतीं। इसका आशय यह भी सम्भव है - ग्रीष्म ऋतु में समुद्र की ओर से आई हुई शीत (जल से स्निग्ध एवं ठण्डी) वायु जब चलती है, फ्र तब द्वीप की जमीन से उठी हुई उष्ण वायु नहीं चलती। शीत ऋतु में जब गर्म हवाएँ चलती हैं, तब वे द्वीप की जमीन से आई हुई होती हैं। यानी जब द्वीपीय उष्ण वायु चलती है, तब समुद्रीय शीत वायु नहीं चलती। समुद्र की शीतल और द्वीप की उष्ण दोनों हवाएँ परस्पर विरुद्ध तथा परस्पर उपघातक होने से ये दोनों एक साथ नहीं चलतीं अपितु उन दोनों में से एक ही वायु चलती है। (स्कन्दक के प्रश्नोत्तर, शतक २, उ. १, देखें) 卐 Fifth Shatak: Second Lesson फ 卐 5 फ्र 卐 फ्र www.jainelibrary.org
SR No.002903
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages654
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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