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[उ. ] गौतम ! जिस प्रकार पहले कहा गया है, उसी प्रकार विनसापरिणत के विषय में कहना ॥ चाहिए, यावत् एक द्रव्य, चतुरस्रसंस्थानरूप से परिणत होता है, एक द्रव्य आयत संस्थान से परिणत होता है।
35. (Q.) Bhante ! If two substances are visrasa parinat (naturally transformed), then are they transformed as attributes of colour ? (or... and so on up to... as attributes of constitution).
[Ans.] Gautam ! The aforesaid pattern should also be followed for naturally transformed matter (visrasa parinat pudgala)... and so on up to... one substance is transformed as attributes of square constitution and the other is transformed as attributes of rectangular constitution.
विवेचन : प्रस्तुत छह सूत्रों (सू. ८० से ८५ तक) में दो द्रव्यों से सम्बन्धित विभिन्न विशेषणयुक्त मनोयोग ॐ आदि के संयोग से प्रयोगपरिणत, मिश्रपरिणत और विस्रसापरिणत पदों के विभिन्न भंगों का निरूपण है।
तीन पदों के छह भंग-दो द्रव्यों के सम्बन्ध में प्रयोगपरिणत, मिश्रपरिणत और विस्रसापरिणत; इन तीन पदों ॐ के असंयोगी तीन भंग और द्विकसंयोगी तीन भंग, यों कुल छह भंग होते हैं।
मनःप्रयोगपरिणत के पाँच सौ चार भंग-सर्वप्रथम सत्यमनःप्रयोगपरिणत, असत्यमनःप्रयोगपरिणत आदि चार पदों के असंयोगी चार भंग और द्विकसंयोगी छह भंग; इस प्रकार कुल दस भंग होते हैं। फिर आरम्भसत्यमनः 卐 प्रयोग आदि छह पदों के असंयोगी छह भंग और द्विकसंयोगी पन्द्रह भंग होते हैं। इस प्रकार , + आरम्भसत्यमन-प्रयोगपरिणत (द्रव्यद्वय) के ६ + १५ = २१ भंग हुए। इसी प्रकार अनारम्भसत्यमनःप्रयोग
आदि शेष पाँच पदों के भी प्रत्येक के इक्कीस-इक्कीस भंग होते हैं। यों सत्यमनःप्रयोगपरिणत के आरम्भ, ॐ अनारम्भ, संरम्भ, असंरम्भ, समारम्भ, असमारम्भ; इन छह पदों के साथ कुल २१ x ६ = १२६ भंग हुए।
__इसी प्रकार सत्यमनःप्रयोगपरिणत की तरह असत्यमनःप्रयोगपरिणत, सत्यमृषामनःप्रयोगपरिणत, ॐ असत्यामृषामनःप्रयोगपरिणत; इन तीन पदों के भी आरम्भ आदि छह पदों के साथ प्रत्येक के पूर्ववत् एक सौ म छब्बीस-एक सौ छब्बीस भंग होते हैं। अतः मनःप्रयोगपरिणत के सत्यमनःप्रयोगपरिणत, असत्यमनः ॥ प्रयोगपरिणत आदि विशेषणों से चारों पदों के कुल १२६ x ४ = ५०४ भंग होते हैं।
वचनप्रयोगपरिणत के भी पाँच सौ चार भंग-जिस प्रकार मनःप्रयोगपरिणत के उपर्युक्त पाँच सौ चार भंग होते हैं, उसी प्रकार वचनप्रयोगपरिणत के भी पाँच सौ चार भंग होते हैं।
औदारिक आदि कायप्रयोगपरिणत के एक सौ छियानवे भंग-औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत आदि सात पद के हैं, इनके असंयोगी सात भंग और द्विकसंयोगी इक्कीस भंग, यों कुल ७ + २१ = २८ भंग एक पद के होते हैं।
सातों पदों के कुल २८ x ७ = १९६ भंग कायप्रयोगपरिणत के होते हैं। म त्रियोगसम्बन्धी मिश्रपरिणत भंग-इस प्रकार मनःप्रयोगपरिणत सम्बन्धी पाँच सौ चार, वचनप्रयोगपरिणत
सम्बन्धी पाँच सौ चार और कायप्रयोगपरिणत सम्बन्धी एक सौ छियानवे, यों कुल एक हजार दो सौ चार भंग :
प्रयोगपरिणत के होते हैं। जिस प्रकार प्रयोगपरिणत दो द्रव्यों के कुल एक हजार दो सौ चार भंग कहे गये हैं, म उसी प्रकार मिश्रपरिणत दो द्रव्यों के भी कुल एक हजार दो सौ चार भंग समझने चाहिए।
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अष्टम शतक : प्रथम उद्देशक
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Eighth Shatak: First Lesson
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