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________________ 25 55 5 5 5 5 5 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 59555552 फफफफफफफफफफफफ 卐 卐 卐 卐 [Ans.] Yes, Gautam ! They do. ८. [प्र.१] जया णं भंते! दीविच्चया ईसिं पुरेवाया तया णं सामुद्दया वि ईसिं पुरेवाया, जया णं सामुद्दया ईसिं पुरेवाया तया णं दीविच्चया वि ईसिं पुरेवाया ? [ उ. ] णो इणट्ठे समट्ठे । [प्र. २] से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चति जया णं दीविच्चया ईसिं पुरेवाया णो णं तया सामुद्दया ईसिं पुरेवाया, जया णं सामुद्दया ईसिं पुरेवाया णो णं तया दीविच्चया ईसिं पुरेवाया ? [उ.] गोयमा ! तेसि णं वायाणं अन्नमन्नस्स विवच्चासेणं लवणे समुद्दे वेलं नायिक्कमति । से तेणट्टेणं 5 जाव वाता वायंति । [प्र.१] भगवन् ! जब द्वीप में ईषत्पुरोवात आदि वायु बहती हैं, तब क्या समुद्र की भी 5 ईषत्पुरोवात आदि वायु बहती हैं ? और जब समुद्र की ईषत्पुरोवात आदि वायु बहती हैं, तब क्या द्वीप 5 की भी ईषत्पुरोवात आदि वायु बहती हैं ? [उ. ] हे गौतम ! यह अर्थ समर्थ (शक्य ) नहीं है। [प्र. २ ] भगवन् ! ऐसा किस कारण से कहा जाता है कि जब द्वीप की ईषत्पुरोवात आदि हवाएँ बहती हैं, तब समुद्र की ईषत्पुरोवात आदि हवाएँ नहीं बहतीं और जब समुद्र की ईषत्पुरोवात आदि 卐 卐 卐 [उ.] हाँ, गौतम ! होती हैं । 5 ७. [ प्र.] भगवन् ! क्या समुद्र में भी ईषत्पुरोवात आदि हवाएँ होती हैं ? 5 [उ.] हाँ, गौतम ! (समुद्र में भी ये सब हवाएँ) होती हैं। 6. [Q.] Bhante ! Do these winds also exist on continents ? 5 वायु नहीं बहतीं और जब समुद्र की ईषत्पुरोवात आदि वायु बहती हैं, तब द्वीप की ये सब वायु नहीं 卐 卐 [Ans.] Yes, Gautam ! They do. 7. [Q.] Bhante ! Do these winds also exist on seas ? 卐 फ वेला (ऊपर उठती लहरों या ज्वार-भाटा) का उल्लंघन नहीं करतीं। इस कारण यावत् वे वायु पूर्वोक्त ८. हवाएँ बहती हैं, तब द्वीप की ईषत्पुरोवात आदि हवाएँ नहीं बहतीं ? [ उ. ] गौतम ! ये सब वायु (हवाएँ) परस्पर व्यत्यासरूप से (एक-दूसरे के विपरीत, पृथक्-पृथक् तथा एक-दूसरे के साथ नहीं) बहती हैं। (जब द्वीप की ईषत्पुरोवात आदि वायु बहती हैं, तब समुद्र की फ्र बहतीं। इस प्रकार ये सब हवाएँ एक-दूसरे के विपरीत बहती हैं ।) साथ ही, वे वायु लवणसमुद्र की रूप से बहती हैं। 8. [Q. 1] Bhante ! When the aforesaid winds blow on the continents, फ्र do they also blow on the seas; and when they blow on the seas do they blow on the continents? also भगवती सूत्र (२) Jain Education International (26) For Private & Personal Use Only फ्र Bhagavati Sutra (2) 55 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002903
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages654
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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