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२५. [प्र. ] भगवन् ! सर्वार्थसिद्ध- अनुत्तरौपपातिक - कल्पातीतदेव - प्रयोग - परिणत पुद्गलों के कितने प्रकार हैं ?
[उ. ] गौतम ! वे दो प्रकार के हैं। यथा-पर्याप्तक सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीतदेवप्रयोग - परिणत पुद्गल और अपर्याप्तक सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरौपपातिक-कल्पातीतदेव प्रयोग- परिणत पुद्गल । [ दूसरा दण्डक पूर्ण हुआ । ]
25. [Q.] Bhante ! Now the question is about Sarvarthasiddha Anuttaraupapatik Kalpateet Vaimanik dev prayoga parinat pudgala (matter consciously transformed as bodies of Sarvarthasiddha Anuttaraupapatik celestial-vehicular divine beings beyond the Kalps)?
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[Ans.] Gautam ! They are of two types - paryaptak Sarvarthasiddha Anuttaraupapatik Kalpateet Vaimanik dev prayoga parinat pudgala (matter consciously transformed as fully developed bodies Sarvarthasiddha Anuttaraupapatik celestial-vehicular divine beings beyond the Kalps) and aparyaptak Sarvarthasiddha Anuttaraupapatik Kalpateet Vaimanik dev prayoga parinat pudgala (matter consciously transformed as underdeveloped bodies of Sarvarthasiddha Anuttaraupapatik celestial-vehicular divine beings beyond the Kalps). [Second Dandak Concluded]
तृतीय दण्डक THIRD DANDAK
(इस दण्डक में औदारिक, वैक्रिय आदि पाँच शरीरों की अपेक्षा से कथन है ।)
[This section describes the aforesaid beings in context of five types of bodies including audarik and vaikriya.]
जे
२६.
अपज्जत्ता सुहुमपुढवीकाइय- एगिंदियपयोगपरिणया ओरालिय- तेया- कम्मगसरीरप्पयोगपरिणया । जे पज्जत्तसुहुम ० ओरालिय- तेया- कम्मगसरीरप्पयोगपरिणया । एवं जाव चउरिंदिया पज्जत्ता ।
जाव परिणया
नवरं जे पज्जत्तगबादरवाउकाइयएगिंदियपयोगपरिणया ते ओरालिय- वेउब्विय - तेया- कम्मसरीर जाव परिणया । सेसं तं चेव ।
-
२६. जो पुद्गल अपर्याप्त - सूक्ष्म- पृथ्वीकाय - एकेन्द्रिय-प्रयोग - परिणत हैं, वे औदारिक, तैजस और कार्मण - शरीर-प्रयोग- परिणत हैं। जो पुद्गल पर्याप्तक- सूक्ष्म - पृथ्वीकाय-एकेन्द्रियप्रयोग- परिणत हैं, वे भी औदारिक, तैजस और कार्मण-शरीर-प्रयोग-परिणत हैं।
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इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रियपर्याप्तक तक के (प्रयोग - परिणत पुद्गलों के विषय में) जानना चाहिए। परन्तु विशेष इतना है कि जो पुद्गल पर्याप्त - बादर - वायुकायिक- एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत हैं,
भगवती सूत्र ( २ )
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Bhagavati Sutra (2)
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