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१७. [प्र. १] भगवन् ! सूक्ष्म-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के हैं? _[उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के हैं। यथा-पर्याप्तक-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल और अपर्याप्तक-सूक्ष्मपृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल। [कई आचार्य अपर्याप्तक (वाले प्रकार) को पहले और पर्याप्तक (वाले प्रकार) को बाद में कहते हैं।] [२] इसी प्रकार बादर-पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल के भी (उपर्युक्तवत्) दो भेद कहने चाहिए।
१८. इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिक (एकेन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल) तक प्रत्येक के सूक्ष्म और बादर ये दो भेद और फिर इन दोनों के पर्याप्तक और अपर्याप्तक भेद कहने चाहिए। ___17. [Q. 1] Bhante ! How many types of sukshma prithvikaayik ekendriya prayoga parinat pudgala (matter consciously transformed as bodies of minute one-sensed-earth-bodied beings) are there?
[Ans.] Gautam ! They are of two types-paryaptak sukshma prithvikaayik ekendriya prayoga parinat pudgala (matter consciously transformed as bodies of fully developed minute one-sensed-earth-bodied beings) and aparyaptak sukshma prithvikaayik ekendriya prayoga parinat pudgala (matter consciously transformed as bodies of underdeveloped minute one-sensed-earth-bodied beings). (Many commentators state these in reverse order). [2] In the same way two types for baadar prithvikaayik ekendriya prayoga parinat pudgala (matter consciously transformed as bodies of gross one-sensed-earthbodied beings) should be stated.
18. In the same way two types, paryaptak and aparyaptak, should be stated for two classes, sukshma and baadar, of matter related to all onesensed beings up to plant-bodied beings.
१९. [प्र. १ ] बेंदियपयोगपरिणयाणं पुच्छा।
[उ. ] गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पज्जत्तगबेंदियपयोगपरिणया य, अपज्जत्तग जाव परिणया य।[ २ ] एवं तेइंदिया वि। [३] एवं चरिंदिया वि।
१९. [प्र.१] भगवन् ! द्वीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल कितने प्रकार के हैं ?
[उ.] गौतम ! वे दो प्रकार के हैं। जैसे कि-पर्याप्तक द्वीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल और अपर्याप्तक द्वीन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गल। [२] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय और [३] चतुरिन्द्रिय-प्रयोग-परिणत पुद्गलों के विषय में भी समझ लेना चाहिए। ____19. [Q. 1] Bhante ! How many types of dvindriya prayoga parinat pudgala (matter consciously transformed as bodies of two-sensed beings) are there?
अष्टम शतक : प्रथम उद्देशक
(479)
Eighth Shatak : First Lesson
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