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________________ सप्तम शतक : दशम उद्देशक SEVENTH SHATAK (Chapter Seven) : TENTH LESSON 3Touch ANYAYUTHIK (HERETICS) कालोदायी की चर्चा और प्रव्रज्या DISCUSSIONS AND INITIATION OF KALODAYI १. तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नाम नगरे होत्था। वण्णओ। गुणसिलए चेइए। वण्णओ। जाव पुढविसिलापट्टए। २. तस्स णं गुणसिलयस्स चेइयस्स अदूरसामंते बहवे अनउत्थिया परिवसंति; तं जहा-कालोदाई सेलोदाई सेवालोदाई उदए णामुदए नम्मुदए अन्नवालए सेलवालए संखवालए सुहत्थी गाहावई। १. उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। उसका वर्णन करना चाहिए। वहाँ गुणशीलक नामक चैत्य था। यावत् (एक) पृथ्वीशिलापट्टक था। । २. उस गुणशीलक चैत्य के पास थोड़ी दूर पर बहुत से अन्यतीर्थी रहते थे। यथा-कालोदायी, शैलोदायी, शैवालोदायी, उदय, नामोदय, नर्मोदय, अन्यपालक, शैलपालक, शंखपालक और सुहस्ती गृहपति। 1. During that period of time there was a city called Rajagriha. Description (as before). There was a Chaitya called Gunasheelak... and so on up to... There was a slab of stone.... 2. A little distance away from that Gunasheelak Chaitya lived many heretics (anyatirthi)-Kalodayi, Shailodayi, Shaivalodayi, Udaya, Naamodaya, Narmodaya, Anyapaalak, Shail-paalak, Shankh-paalak, and Suhasti householder. ३. तए णं तेसिं अनउत्थियाणं अनया कयाई एगयओ सहियाणं समुवागयाणं सन्निविट्ठाणं सन्निसण्णाणं अयमेयारूवे मिहोकहासमुल्लावे समुप्पज्जित्था "एवं खलु समणे णायपुत्ते पंच अत्थिकाए पण्पेवेति, तं जहा-धम्मत्थिकायं जाव आगासत्थिकायं। तत्थ णं समणे णायपुत्ते चत्तारि अस्थिकाए अजीवकाए पण्णवेति, तं०-धम्मत्थिकायं अधम्मत्थिकार्य आगासत्थिकायं पोग्गलत्थिकायं। एगं च समणे णायपुत्ते जीवत्थिकायं अरूविकायं जीवकायं पनवेति। तत्थ णं समणे णायपुत्ते चत्तारि अस्थिकाए अरूविकाए पनवेति, तं जहा-धम्मत्थिकायं अधम्मत्थिकायं आगासत्थिकायं जीवत्थिकायं। एगं च णं समणे णायपुत्ते पोग्गलत्थिकायं रूविकायं अजीवकायं पन्नवेति। से कहमे तं मन्ने एवं ? ३. तत्पश्चात् किसी समय वे सब अन्यतीर्थिक एक स्थान पर आये, एकत्रित हुए और सुखपूर्वक भलीभाँति बैठे। फिर उनमें परस्पर इस प्रकार का वार्तालाप प्रारम्भ हुआ सप्तम शतक : दशम उद्देशक (453) Seventh Shatak : Tenth Lesson %% %% %%%% %%% %% %%%%% %%%%% %%% %%%%%% For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002903
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages654
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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