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6 Varun Naag-naptrik responded"Beloved of gods ! As a rule I do not hit
a person who has not already hit me. Therefore, hit me first if you want 5 a fight.” # [९] तए णं से पुरिसे वरुणेणं णागणत्तुएणं एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे धj
परामुसति, परामुसित्ता उसुं परामुसति, उसुं परामुसित्ता ठाणं ठाति, ठाणं ठिच्चा आयतकण्णायतं उसुं # करेति, आयतकण्णायतं उसुं करेत्ता वरुणं णागणत्तयं गाढप्पहारीकरेति।
[१०] तए णं से वरुणे णागणत्तुए तेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकए समाणे आसुरुत्ते जाव 5 मिसिमिसेमाणे धणुं परामुसति, धणुं परामुसित्ता उसु परामुसति, उसु परामुसित्ता आयतकण्णायतं उसुं करेति, आयतकण्णायतं उसुं करेत्ता तं पुरिसं एगाहच्चं कूडाहच्चं जीवियाओ ववरोवेति।
[९] तदनन्तर वरुण नागनत्तुआ के द्वारा ऐसा कहने पर उस पुरुष ने शीघ्र ही क्रोध से लालपीला होकर यावत् दाँत पीसते हुए अपना धनुष उठाया। फिर बाण उठाया। फिर धनुष पर यथास्थान बाण चढ़ाया। फिर अमुक आसन से अमुक स्थान पर स्थित होकर धनुष को कान तक खींचा। ऐसा करके उसने वरुण नागनत्तुआ पर गाढ़ प्रहार किया।
[१०] इसके पश्चात् उस पुरुष द्वारा किये गये गाढ़ प्रहार से घायल हुए वरुण नागगत्तुआ ने शीघ्र कुपित होकर धनुष उठाया। फिर उस पर बाण चढ़ाया और उस पुरुष पर छोड़ा। जैसे एक ही जोरदार चोट से पत्थर के टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं, उसी प्रकार वरुण नागनप्तृक ने एक ही गाढ़ प्रहार से उस पुरुष को जीवन से रहित कर दिया।
[9] When Varun Naag-naptrik said this, that person became red with anger and gnashing his teeth he lifted his bow. He then fitted an arrow fi properly. Doing this, he stood at a specific spot in a specific posture and
drew the bow-string up to his ear. At last he launched the arrow Varun Naag-naptrik with great force.
[10] Wounded by this blow from the adversary Varun Naag-naptrik got enraged. He lifted his bow, set an arrow and launched at his attacker. Like a strong hammer-blow shatters a stone, in the same way Varun Naag-naptrik killed his adversary with just one forceful strike.
[११] तए णं से वरुणे नागणत्तुए तेणं पुरिसेणं गाढप्पहारीकते समाणे अत्थामे अबले अवीरिए 5 अपुरिसक्कारपरक्कमे अधारणिज्जमिति कटु तुरए निगिण्हति, तुरण निगिण्हित्ता रहं परावत्तेइ, २ त्ता
रहमुसलातो संगामातो पडिनिक्खमति, रहमुसलाओ संगामातो पडिणिक्खमेत्ता एगंतमंतं अवक्कमति, एगंतमंतं अवक्कमित्ता तुरण निगिण्हति, निगिहित्ता रहं ठवेति, २ ता रहातो पच्चोरुहति, रहातो पच्चोरुहित्ता रहाओ तुरए मोएति, २ तुरए विसज्जेति, विसज्जित्ता दन्भसंथारगं संथरेति, संथरित्ता दभसंथारगं दुरुहति, दब्भसं० दुरुहित्ता पुरत्थाभिमुहे संपलियंकनिसण्णे करयल जाव कटु एवं वयासी
a5听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听5555555555555555555555555+
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| सप्तम शतक : नवम उद्देशक
(447)
Seventh Shatak: Ninth Lesson |
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