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२२. [ प्र. १ ] भगवन् ! लवणसमुद्र में सूर्य ईशानकोण में उदय होकर अग्निकोण में जाते हैं ? इत्यादि सारा प्रश्न पूछना चाहिए।
[ उ. ] जच्चेव जंबुद्दीवस्स वत्तव्वया भणिया सच्चेव सव्वा अपरिसेसिया लवणसमुद्दस्स वि भाणियव्वा, 5
नवरं अभिलावो इमो जाणियव्वो- 'जया णं भंते ! लवणे समुद्दे दाहिणड्ढे दिवसे भवइ तया णं लवणे समुद्दे पुरत्थिमपच्चत्थिमेणं राई भवति ? एतेणं अभिलावेणं नेयव्वं
[उ.] गौतम ! जम्बूद्वीप में सूर्यों के सम्बन्ध में जो वक्तव्यता कही गई है, वह सम्पूर्ण वक्तव्यता यहाँ लवणसमुद्रगत सूर्यों के सम्बन्ध भी कहनी चाहिए । विशेष बात यह है कि इस वक्तव्यता में पाठ
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का उच्चारण इस प्रकार करना चाहिए- "गवन् ! जब लवणसमुद्र के दक्षिणार्द्ध में दिन होता है,' फ्र इत्यादि सारा कथन उसी प्रकार कहना चाहिए, यावत् 'तब लवणसमुद्र के पूर्व-पश्चिम में रात्रि होती है।' इसी अभिलाप द्वारा सब वर्णन जान लेना चाहिए।
[प्र. २ ] जया णं भंते ! लवणसमुद्दे दाहिणड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जति तया णं उत्तरड्ढे वि पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ ? जया णं उत्तरड्ढे पढमा ओसप्पिणी पडिवज्जइ तया णं लवणसमुद्दे पुरत्थम- पच्चत्थिमेणं नेवत्थि ओसप्पिणी, णेवत्थि उस्सप्पिणी समणाउसो !
[उ. ] हंता, गोयमा ! जाव समणाउसो !
22. [Q. 1] Bhante ! In the Lavan Samudra (Salt Sea ) do suns rise in फ्र the north-east (Ishan Kone) and set in the south-east (Agneya Kone ) ? 5 (Repeat the complete question as asked in case of Jambudveep.)
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[Ans.] Gautam ! What has been stated about the suns of Jambudveep should be repeated here verbatim about suns of Lavan Samudra. The difference is that the statement should be recited as-'Bhante! In Lavan 5 5 Samudra when there is day in the southern half ... and so on up to ... then 5 there is night in the eastern and western parts of Lavan Samudra. 'This way the whole description should be narrated.
[उ. ] हाँ, गौतम ! ( यह इसी तरह होता है ।) अर्थात् वहाँ अवस्थित काल कहा गया है।
[Q. 2] Bhante ! In the southern half of Lavan Samudra, when it is the first Avasarpini (the first regressive cycle of time) then in the northern half too is it the first Avasarpini ? And when it is the first Avasarpini in the northern half then in the region east and west of the Lavan Samudra is there neither Avasarpini nor Utsarpini but Avasthit Kaal (changeless time), O Long lived Shraman ?
भगवती सूत्र (२)
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[ प्र. २ ] भगवन् ! जब लवणसमुद्र के दक्षिणार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी होती है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी प्रथम अवसर्पिणी होती है ? और जब उत्तरार्द्ध में प्रथम अवसर्पिणी होती है, तब क्या लवणसमुद्र के पूर्व-पश्चिम में अवसर्पिणी नहीं होती ? उत्सर्पिणी नहीं होती ? किन्तु हे दीर्घजीवी श्रमणपुंगव ! क्या 5 वहाँ अवस्थित (अपरिवर्तनीय) काल होता है ?
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Bhagavati Sutra (2)
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