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१३. [प्र. ] ते णं भंते ! मणुया निस्सीला जाव निप्पच्चक्खाणपोसहोववासा सारुट्ठा परिकुविया # समरवहिया अणुवसंता कालमासे कालं किच्चा कहिं गया ? कहिं उववन्ना ? + [उ. ] गोयमा ! ओसन्नं नरग-तिरिक्खजोणिएसु उववत्रा।
१३. [प्र. ] भगवन् ! शीलरहित यावत् प्रत्याख्यान एवं पौषधोपवास से रहित, रोष (आवेश) में ! भरे हुए, परिकुपित, युद्ध में घायल हुए और अनुपशान्त वे युद्ध करने वाले मनुष्य मृत्यु के समय ॐ मरकर कहाँ गये, कहाँ उत्पन्न हुए?
[उ.] गौतम ! ऐसे मनुष्य प्रायः नरक और तिर्यंचयोनियों में उत्पन्न हुए हैं। ___13. [Q.] Bhante ! Where did these warring men devoid of good 卐 conduct... and so on up to... remorse and fasting, full of bitterness, full of anger, wounded and restless, go after death and get reborn ?
(Ans.) Gautam ! Most of these men got reborn among infernal beings or animals.
रथमूसल संग्राम RATH-MUSAL BATTLE म १४. [प्र. ] णायमेयं अरहया, सुतमेयं अरहया, विण्णायमेयं अरहया रहमुसले संगामे रहमुसले
संगामे। रहमुसले णं भंते ! संगामे वट्टमाणे के जइत्था ? के पराजइत्था ? म [उ. ] गोयमा ! वजी विदेहपुत्ते चमरे य असुरिंदे असुरकुमारराया जइत्था, नव मल्लई नव लेच्छई ॐ पराजइत्था।
१४. [प्र. ] भगवन् ! अर्हन्त भगवान ने जाना है, इसे प्रत्यक्ष किया है और विशेष रूप से जाना * है कि यह रथमूसल संग्राम है। भगवन् ! यह रथमूसल संग्राम जब हो रहा था, तब कौन जीता, फ़ कौन हारा? [ [उ. ] हे गौतम (वज्जी गण या वंश का विदेहपुत्र या) वज्री-इन्द्र और विदेहपुत्र (कूणिक) एवं 卐 असुरेन्द्र असुरराज चमर जीते और नौ मल्लकी और नौ लिच्छवी (ये अठारह गण) राजा हार गये।
14. (Q.) Bhante ! Arhant Bhagavan has known about this, heard 4 about this and specially known about this that indeed this is Rath-musal 4 battle. Bhante ! When Rath-musal battle was going on who won and who 卐 lost ?
(Ans.] Gautam ! Vajji Videhaputra (King Kunik of Vajji or Indra, the wielder of thunder, and King Kunik) and Chamar, the king of Asurs won.
Nine Malla chiefs and nine Lichchhavi chiefs, who were the eighteen 4 kings of republics of Kashi and Kaushal countries, lost.
१५. तए णं से कूणिए राया रहमुसलं संगामं उवट्ठियं., सेसं जहा महासिलाकंटए नवरं भूताणंदे + हत्थिराया जाव रहमुसलं संगामं ओयाए, पुरतो य से सक्के देविंदे देवराया। एवं तहेव जाव चिट्ठति,
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Bhagavati Sutra (2)
भगवती सूत्र (२)
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