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________________ 卐 फ्र 卐 卐 தததததததததததததததத २१. जहा ओसप्पिणीए आलावओ भणिओ एवं उस्सप्पिणीए वि भाणियव्वो । ததததமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிதிமிதிதின் २१. जिस प्रकार अवसर्पिणी के विषय में कथन किया (आलापक कहा) है, उसी प्रकार उत्सर्पिणी फ्र के विषय में भी कहना चाहिए। 卐 21. Gautam ! As has been said about Avasarpini so should also be repeated for Utsarpini (progressive cycle of time). = विवेचन : विविध कालमानों की व्याख्या - ऊऊ = ऋतु । ऋतु भी एक प्रकार का कालमान है। वर्षभर में यों तो ६ ऋतुएँ मानी जाती हैं - बसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद्, हेमन्त और शिशिर । परन्तु यहाँ तीन ऋतुओं का नामोल्लेख 5 किया गया है, इसलिए चार-चार महीने की एक-एक ऋतु मानी जानी चाहिए। अनंतर - पुरक्खडसमयंसि = दक्षिणार्द्ध में प्रारम्भ होने वाली वर्षा ऋतु प्रारम्भ की अपेक्षा अनन्तर ( तुरन्त पूर्व ) भविष्यत्कालीन समय को अन्तरपुरस्कृत समय कहते हैं। अणंतरपच्छाकडसमयंसि पूर्व और पश्चिम महाविदेह में प्रारम्भ होने वाली वर्षा फ ऋतु प्रारम्भ की अपेक्षा अनन्तर ( तुरन्त बाद के) अतीतकालीन समय को अनन्तर पश्चात्कृत समय कहते हैं। 5 समय से लेकर ऋतु तक काल के १० भेद होते हैं - ( १ ) समय ( काल का सबसे छोटा भाग), (२) आवलिया (असंख्यात समय), (३) आणापाणू (आनपान = उच्छ्वास - निःश्वास), (४) थोवं (स्तोक - सात आनप्राणों का), (५) लव (सात स्तोकों का), (६) मुहुत्तं ( मुहूर्त्त = ७७ लव, अथवा ३,७७३ श्वासोच्छ्वास, या ४८ मिनट का ), (७) अहोरत्तं (अहोरात्र - ३० मुहूर्त्त का ), (८) पक्खं (पक्ष = १५ दिन-रात का), (९) मासं (मास- दो पक्ष का एक महीना) उऊ (ऋतु - दो मास की एक ऋतु) । अयणं (अयन = तीन ऋतुओं का ), संवच्छरं (दो अयन का), जुए (युग = पाँच संवत्सर का ), वाससतं ( सौ वर्ष ), वाससहस्सं ( हजार वर्ष ), वाससतसहस्सं (एक लाख वर्ष), वंग (८४ लाख वर्षों का), पुव्वं (८४ लाख को ८४ लाख से गुणा करने से जितने वर्ष हों, उतने वर्षों का एक पूर्व), तुडियंगं (एक पूर्व को ८४ लाख से गुणा करने से एक त्रुटितांग), तुडिए (एक त्रुटितांग को ८४ लाख से गुणा करने पर एक त्रुटित ), इसी प्रकार पूर्व - पूर्व की राशि को ८४ लाख से गुणा करने पर उत्तर - उत्तर की फ्र समय राशि क्रमशः बनती है। वह इस प्रकार है-अटटांग, अटट, अववांग, अवव, हूहूकांग, हूहूक, उत्पलांग, उत्पल, पद्मांग, पद्म, नलिनांग, नलिन, अर्थनुपूरांग, अर्थनुपूर, अयुतांग, अयुत, नयुतांग, नयुत, प्रयुतांग, प्रयुत, चूलिकांग, चूलिका, शीर्षप्रहेलिकांग, शीर्षप्रहेलिका (१९४ अंकों की संख्या), पल्योपम और सागरोपम गणना के विषय नहीं हैं, उपमा के विषय हैं, उन्हें उपमाकाल कहते हैं ।) अवसर्पिणी- यह काल दस कोड़ाकोड़ी सागरोपम का होता है। इसके ६ विभाग (आरा) होते हैं। एक प्रकार से यह अर्द्ध-काल-चक्र है । उत्सर्पिणी- यह काल भी दस कोड़ाकोड़ी सागरोपम का होता है। इसके भी ६ विभाग 5 (आरा) होते हैं। दोनों मिलकर एक काल-चक्र होता है। अवसर्पिणी - उत्सर्पिणी काल-चक्र का प्रवर्तन केवल ५ भरत तथा ५ ऐरवत क्षेत्र में ही होता है। Elaboration-Various units of time-Uu (Ritu or season) is also a kind of unit of time. Generally there are said to be six seasons in a yearVasant (spring ), Grishma (summer ), Varsha (monsoon), Sharad (autumn), Hemant (cold) and Shishir (winter). But here only three seasons have been mentioned making them four months long each. Anantar-purakkhadasamayamsi Anantar-puraskrit Samaya or the भगवती सूत्र (२) = Jain Education International 卐 卐 (18) Bhagavati Sutra (2) For Private & Personal Use Only 5 फ्र 卐 卐 2 5 5 5 5 55 5 5 5 5 5555 5555555559555552 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002903
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhyaprajnapti Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Shreechand Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2006
Total Pages654
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_bhagwati
File Size20 MB
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