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४. एवं जाव वेमाणियाणं ।
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३ . [ प्र. ] भगवन् ! नैरयिकों द्वारा जो पापकर्म किया गया है, जो किया जाता है और जो किया फ
जायेगा, क्या वह सब दुःखरूप है और (उनके द्वारा) जिसकी निर्जरा की गई है, क्या वह सुख रूप है ? [ उ. ] हाँ, गौतम ! नैरयिकों द्वारा जो पापकर्म किया गया है, वह सब दुःखरूप है और (उनके 5
5 द्वारा) जिन (पापकर्मों) की निर्जरा की गई है, वह सब सुखरूप है।
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3. [Q.] Bhante ! Are all the sinful acts done (demeritorious karmas acquired) in the past, being done at present and to be done in future by 5 infernal beings are (take the form of) misery ? And all (the karmas) that have been shed are (take the form of) happiness ?
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[Ans.] Yes, Gautam ! All the sinful acts done by infernal beings are
misery. And all that have been shed are happiness.
४. इस प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त चौबीस दण्डकों में जान लेना चाहिए।
4. The same should be repeated for all living beings of twenty four Dandaks (places of suffering) up to Vaimaniks.
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Elaboration-Conclusion-Demeritorious karmas (paap karma) being the cause of continued cycles of rebirth are misery and shedding of these karmas being the cause of liberation is happiness. Here the causes of
misery and happiness have been mentioned as misery and happiness. leaf 313)
(Vritti,
विवेचन : निष्कर्ष-पापकर्म संसार - परिभ्रमण का कारण होने से दुःखरूप है, और पापकर्मों की निर्जरा 5 मोक्ष का हेतु होने से सुखरूप है। यहाँ सुख और दुःख के कारण को ही सुख-दुःख कहा गया है। फ (वृत्ति, पत्रांक ३१३)
सुखस्वरूप
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(426)
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Bhagavati Sutra (2)
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संज्ञाओं के दस प्रकार TEN KINDS OF INCLINATIONS
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५. [ प्र. ] कति णं भंते ! सण्णाओ पण्णत्ताओ ?
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[उ. ] गोयमा ! दस सण्णाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - आहारसण्णा १ भयसण्णा २ मेहुणसण्णा ३
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5 परिग्गहसण्णा ४ कोहसण्णा ५ माणसण्णा ६ मायासण्णा ७ लोभसण्णा ८ ओहसण्णा ९ लोगसण्णा १० | ६. एवं जाव वेमाणियाणं ।
५. [ प्र. ] भगवन् ! संज्ञाएँ कितने प्रकार की हैं ?
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[उ. ] गौतम ! संज्ञाएँ दस प्रकार की हैं। यथा - (१) आहारसंज्ञा, (२) भयसंज्ञा, (३) मैथुनसंज्ञा, 5
(४) परिग्रहसंज्ञा, (५) क्रोधसंज्ञा, (६) मानसंज्ञा, (७) मायासंज्ञा, (८) लोभसंज्ञा, (९) लोकसंज्ञा, फ और 5
ओघसंज्ञा ।
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(१०) 5 भगवती सूत्र (२)
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