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वह भोग त्यागी नहीं है। दुर्बल शरीर वाला भी अध्यवसाय (मानसिक) स्तर पर विषय का भोग कर सकता है, इस अपेक्षा से कहा है-भोग त्याग करने पर ही महानिर्जरा महापर्यवसान होती है।
Elaboration-The message of aphorisms 21-23 is that although a weak person with emaciated body may be unable to enjoy physical pleasures, as long as he does not renounce these desires mentally, vocally and physically he is not a renouncer of pleasures. A person with a weak body can still indulge in pleasant experiences mentally. That is why it is mentioned here that extensive shedding of karmas (maha nirjara) and a noble end (mahaparyavasan) is attained only on complete renunciation. अकाम वेदना का वेदन INVOLUNTARY EXPERIENCE OF PAIN
२४. [प्र.] जे इमे भंते! असण्णिणो पाणा, तं जहा- पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया छट्ठा य एगइया तसा, एए णं अंधा मूढा तमं पविट्ठा तमपडल - मोहजालपलिच्छन्ना अकामनिकरणं वेदणं वेदेंतीति वत्तव्वं सिया ?
[उ. ] हंता, गोयमा ! जे इमे असण्णिणो पाणा जाव वेदणं वेदेंतीति वत्तव्वं सिया ।
२४. [प्र. ] भगवन् ! ये जो असंज्ञी (मनरहित) प्राणी हैं, यथा- पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक; ये पाँच (स्थावर ) तथा छठे कई त्रसकायिक ( सम्मूर्च्छिम ) जीव हैं, जो अन्ध ( अन्धों की तरह अज्ञानान्ध) हैं, मूढ़ (मोहयुक्त होने से तत्त्वश्रद्धान के अयोग्य) हैं, तामस ( अज्ञानरूप अन्धकार) में प्रविष्ट की तरह हैं, (ज्ञानावरणरूप) तमःपटल और (मोहनीयरूप) मोहजाल से आच्छादित हैं, वे अकामनिकरण (अज्ञान रूप में या अनिच्छापूर्वक) वेदना वेदते हैं, क्या ऐसा कहा जा सकता है ?
[उ.] हाँ, गौतम ! जो ये असंज्ञी प्राणी पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक और छठे कई कायिक ( सम्मूर्च्छिम) जीव हैं, यावत् ये सब अकामनिकरण वेदना वेदते हैं। (क्योंकि उनमें इच्छा शक्ति का अभाव है)
24. [Q.] There are non-sentient (asanjni ) beings including five kinds of immobile beings, like earth-bodied beings, water-bodied beings, firebodied beings, air-bodied beings, and plant-bodied beings, and, sixth, many mobile beings, which are blind (ignorant), stupid (incapable of observing reality due to stupor of fondness), engulfed in darkness (of ignorance), encumbered by veil of darkness (jnanavaran) and web of fondness. Can it be said that they undergo involuntary (akaam-nikaran) experience of pain ?
[Ans.] Yes, Gautam ! These non-sentient (asanjni ) beings including five kinds of immobile beings, like earth-bodied beings... and so on up
भगवती सूत्र (२)
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Bhagavati Sutra (2)
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