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organs of smell, taste and touch they have physical experience. That is u
why, Gautam ! Four-sensed beings have cerebral experience as well as y 4 physical experience. ॐ १८. अवसेसा जहा जीवा जाव वेमाणिया।
१८. शेष वैमानिक-पर्यन्त सभी जीवों के विषय में औधिक जीवों की तरह कहना चाहिए कि वे कामी भी हैं, भोगी भी हैं।
18. Rest of the beings up to Vaimaniks follow the pattern of the general statement about living beings, i. e. they have cerebral experience as well as physical experience.
१९. [प्र.] एतेसि णं भंते ! जीवाणं कामभोगीणं नोकामीणं, नोभोगीणं, भोगीण य कतरे कतरेहितो जाव विसेसाहिया वा ?
[उ. ] गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा कामभोगी, नोकामी नोभोगी अणंतगुणा, भोगी अणंतगुणा।
१९. [प्र. ] भगवन् ! काम-भोगी, नोकामी नोभोगी और भोगी, इन जीवों में से कौन किनसे अल्प ऊ यावत् विशेषाधिक हैं ?
[उ. ] गौतम ! काम-भोगी जीव सबसे थोड़े हैं, नोकामी-नोभोगी जीव उनसे अनन्तगुणे हैं और भोगी जीव उनसे अनन्तगणे हैं।
19. [Q.JBhante ! Of the kaam-bhogi (with cerebral and physical experience), no-kaami-no-bhogi (without cerebral experience and without physical experience), and bhogi (with physical experience) which jivas (beings) are comparatively less, more, equal and much more?
(Ans.) Gautam ! Kaam-bhogi jivas (beings with cerebral experience and with physical experience) are minimum, no-kaami-no-bhogi jivas (beings without cerebral experience and without physical experience) are
infinite times more than these, and bhogi jivas (beings with physical __experience) are infinite times more than these.
विवेचन : श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, रसन और स्पर्शन ये पाँच इन्द्रियाँ हैं। इनके पाँच विषय हैं-शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श। श्रोत्र और चक्षु ये दो इन्द्रियाँ कामी हैं, शेष तीन भोगी।
जिन विषयों की कामना-अभिलाषा की जाती है, किन्तु शरीर से भोगे नहीं जाते वे 'काम' कहलाते हैं। फ़ जैसे-शब्द और रूप। जिनका विषय संवेदन या अनुभव उत्पन्न करता है। वे भोग हैं, जैसे-गंध, रस और स्पर्श।
___काम और भोग पौद्गलिक हैं। इसलिए वे रूपी हैं। चैतन्य युक्त (जीव का) शब्द और रूप सचित्त हैं, तथा ॐ चैतन्यरहित (अजीव का) शब्द और रूप अचित्त हैं।
सजीव शरीर के रूप की अपेक्षा तथा जीव शब्द की अपेक्षा 'काम' जीव भी है, तथा चित्र, पुतली आदि के रूप की अपेक्षा एवं अजीव शब्द की अपेक्षा काम अजीव भी है। भोग का विषय भी 'काम' की ही भाँति समझना चाहिए। एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय और त्रीन्द्रिय जीव केवल भोगी होते हैं, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय जीव
भगवती सूत्र (२)
(416)
Bhagavati Sutra (2)
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