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२९. एवं नेरइयाण वि ।
३०. एवं जाव वेमाणियाणं ।
२८. [ प्र. ] भगवन् ! जीवों के असातावेदनीय कर्म कैसे बँधते हैं ?
[उ. ] गौतम ! (१) दूसरों को दुःख देने से, (२) दूसरे जीवों को शोक उत्पन्न करने से, (३) जीवों को विषाद या चिन्ता उत्पन्न करने से, (४) दूसरों को रुलाने या विलाप कराने से, (५) दूसरों को पीटने से, और (६) जीवों को परिताप देने से तथा बहुत से प्राण, भूत, जीव एवं सत्त्वों को दुःख पहुँचाने से, शोक उत्पन्न करने से यावत् उनको परिताप देने से ( इस प्रकार की क्रूर वृत्ति से जीवों के असातावेदनीय कर्मबन्ध होता है ) । गौतम ! इस प्रकार से जीवों के असातावेदनीय कर्म बँधते हैं ।
२९. इसी प्रकार नैरयिक जीवों के विषय में ।
३०. इसी प्रकार यावत् वैमानिकपर्यन्त (असातावेदनीयबन्धविषयक) कथन करना चाहिए।
28. [Q.] Bhante ! How do jivas acquire bondage of karmas causing unpleasant experience?
[Ans.] Gautam ! They do so by ( 1 ) causing pain to living beings; (2)
causing distress to them, ( 3 ) causing anxiety and grief to them; (4) by
5 making them weep and shed tears; (5) by beating them; (6) by
5 tormenting them and by causing pain... and so on up to ... torment to 5 numerous living beings. Through such cruel acts (jivas acquire bondage
of karmas causing unpleasant experience). Gautam! This way jivas acquire bondage of karmas causing unpleasant experience.
29. The same should be repeated for (bondage of karmas causing 5 unpleasant experience) infernal beings.
30. and so on up to... Vaimaniks.
विवेचन : सूत्र १५ से २२ तक में कर्कश वेदनीय अकर्कश वेदनीय का तथा २३ से ३० तक साता - असाता वेदनीय का कथन है । कर्कशवेदनीय का अर्थ है बंध हुआ कर्म उदयकाल में अत्यन्त उग्र व भयानक रूप में पीड़ादायक होता है । कर्कशवेदनीय व असातावेदनीय में अन्तर है । कर्कशवेदनीय का सम्बन्ध अनेक कर्मों के वेदन से हैं, जबकि असातावेदनीय का सम्बन्ध केवल वेदनीय कर्म से है । दूसरी बात - कर्कशवेदनीय बंध के हेतु प्राणातिपात आदि १८ पापस्थानक हैं, जबकि असातावेदनीय कर्म का बंध हेतु दूसरे को दुःख व परिताप देना है। अकर्कशवेदनीय का बंध हेतु १८ पापों से विरमण (संवर) करना, तथा सातावेदनीय का बंध हेतु प्राणियों की अनुकम्पा करना है । उमास्वाति ने साता वेदनीय कर्मबंध के ७ कारण बताये हैं । (तत्त्वार्थ ६/१३) कर्कशवेदनीय उदयकाल में अत्यन्त तीव्र रूप में उदय आते हैं, जैसे स्कन्दक आचार्य के शिष्यों ने पहले किसी भव में कर्कशवेदनीय कर्म बाँधे थे, जो तीव्र रूप में उदय आये। (वृत्ति, पत्रांक ३०५ )
Elaboration-Aphorisms 15-22 detail karmas causing experiences of extreme pain (karkash) and not so extreme pain (akarkash) and 23-30
भगवती सूत्र ( २ )
(398)
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Bhagavati Sutra (2)
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