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सप्तम शतक:छठा उद्देशक SEVENTH SHATAK (Chapter Seven): SIXTH LESSON
आयु AYU (LIFE-SPAN) आयुष्य का बन्ध और वेदन BONDAGE AND EXPERIENCING OF AYUSHYA
१. रायगिहे जाव एवं वयासी
२. [प्र.] जीवे णं भंते ! जे भविए नेरइएसु उववज्जित्तए से णं भंते ! किं इहगते नेरइयाउयं पकरेति ? उववज्जमाणए नेरइयाउयं पकरेति ? उववन्ने नेरइयाउयं पकरेति ?
[उ. ] गोयमा ! इहगते नेरइयाउयं पकरेइ, नो उववज्जमाणे नेरइयाउयं पकरेइ, नो उववन्ने नेरइयाउयं पकरेइ।
३. एवं असुरकुमारेसु वि। ४. एवं जाव वेमाणिएसु। १. राजगृह नगर में (गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से) इस प्रकार पूछा
२. [प्र. ] भगवन् ! जो जीव नारकों (नैरयिकों) में उत्पन्न होने योग्य है वह क्या इस भव में रहता हुआ नारकायुष्य बाँधता है, अथवा वहाँ (नरक में) उत्पन्न होता हुआ नारकायुष्य बाँधता है या फिर (नरक में) उत्पन्न होने पर नारकायुष्य बाँधता है ?
[उ. ] गौतम ! वह जीव इस भव में रहता हुआ ही नारकायुष्य बाँध लेता है, परन्तु नरक में उत्पन्न होता हुआ नारकायुष्य नहीं बाँधता और न नरक में उत्पन्न होने पर नारकायुष्य बाँधता है।
३. इसी प्रकार असुरकुमारों के विषय में। ४. इसी प्रकार यावत् वैमानिकपर्यन्त कहना चाहिए।
1. In the city of Rajagriha... and so on up to... Gautam Swami asked Shraman Bhagavan Mahavir as follows:
2. (Q.) Bhante ! Does a jiva (soul) destined to be born among infernal beings acquires the bondage of naarakayushya karma (infernal life-span determining karma) right here during this birth, or acquires the bondage of naarakayushya karma while he is in the process of being born among infernal beings, or acquires the bondage of naarakayushya karma after he is born among infernal beings? __[Ans.] Gautam ! That jiva (soul) acquires the bondage of naarakayushya karma (infernal life-span determining karma) right here during this birth. He does not acquire the bondage of naarakayushya karma while he is in the process of being born among infernal beings nor does he acquire the bondage of naarakayushya karma after he is born among infernal beings.
| सप्तम शतक : छठा उद्देशक
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Seventh Shatak : Sixth Lesson
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