________________
- 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55955 5 5 5 555595555 5 55955 5 5 5 5 555 5555 5
卐
फफफफफफफ
卐
卐
खेचर-पंचेन्द्रिय जीवों के भेद KINDS OF AERIAL BEINGS
सप्तम शतक : पंचम उद्देशक
SEVENTH SHATAK (Chapter Seven): FIFTH LESSON पक्षी PAKSHI (BIRDS)
१. रायगिहे जाव एवं वयासी
२. [.] खयरपंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं भंते ! कतिविहे जोणीसंगहे पण्णत्ते ?
[उ. ] गोयमा ! तिविहे जोणीसंगहे पण्णत्ते, तं जहा- अंडया, पोयया, सम्मुच्छिमा । एवं जहा
जीवाभिगमे जाव नो चेव णं ते विमाणे वीतीवएज्जा । एमहालया णं गोयमा ! ते विमाणा पण्णत्ता ।
[ संग्रहणी गाथा ( वाचनान्तर ) - ' जोणीसंगह लेसा दिट्ठी णाणे य जोग-उवओग |
सेवं भंते! सेवं भंते ! ति० ।
उववाय-ट्ठिइ- समुग्धाय - चवण - जाइ - कुल - विहीओ ॥ ]
| सत्तम सए : पंचमो उद्देसओ समत्तो ॥
१. राजगृह नगर में (गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से) इस प्रकार पूछा
२. [ प्र. ] भगवन् ! खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों का योनिसंग्रह कितने प्रकार का है ?
[उ.] गौतम ! ( खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच जीवों का ) योनिसंग्रह तीन प्रकार का है । यथा - (१) अण्डज, (२) पोतज, और (३) सम्मूर्च्छिम । इस प्रकार ( आगे का सारा वर्णन) जीवाभिगमसूत्र में कहे अनुसार यावत् 'उन विमानों का उल्लंघन नहीं किया जा सकता, हे गौतम ! वे विमान इतने महान् (बड़े) कहे गये हैं;' यहाँ तक कहना चाहिए।
[ संग्रहणी गाथा का अर्थ - योनिसंग्रह, लेश्या, दृष्टि, ज्ञान, योग, उपयोग, उपपात, स्थिति, 卐 5 च्यवन और जाति-कुलकोटि ।]
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है'; यों कहकर गौतम स्वामी यावत् विचरने लगे ।
1. In the city of Rajagriha... and so on up to... Gautam Swami asked Shraman Bhagavan Mahavir as follows:
भगवती सूत्र ( २ )
समुद्घात,
Jain Education International
2. [Q.] Bhante ! How many ways of birth (yoni samgraha ) do aerial 5 five-sensed animals or birds (khechar panchendriya tiryanch) have?
(386)
[Ans.] Gautam ! They have three kinds of ways of birth (yoni samgraha)—(1) Andaj (birth from an egg ), ( 2 ) Potaj (birth as fully 5
25 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 555 55552
For Private & Personal Use Only
卐
Bhagavati Sutra (2)
卐
2 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 55 5 5 55 5 5 55 5552
卐
www.jainelibrary.org