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beings take in and digest nutrients. In the same way trunks (kand) are 45 touched by kand-jivas (living organism of the trunk class) and they, in i turn, are linked with mool-jivas (living organism of root);... and so on up to... seeds (beej) are touched by beej-jivas (living organism of the seed class) and they, in turn, are linked with phal-jivas (living organism of fruit); that is how plant-bodied beings take in and digest nutrients.
विवेचन : वृक्षादि रूप वनस्पति के दस अंग होते हैं-मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वचा (छाल), शाखा, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल और बीज। __मूलादि जीवों से व्याप्त मूलादि द्वारा आहारग्रहण-मूलादि, अपने-अपने जीवों से व्याप्त होते हुए भी परस्पर एक-दूसरे से सम्बद्ध रहते हैं। इस कारण मूल पृथ्वी से रस ग्रहण करते हैं और परम्परा से कन्द आदि सब एक-दूसरे से जुड़े हुए होने से अपना-अपना आहार ले लेते हैं और उसे परिणमाते हैं।
Elaboration--There are ten parts of trees and other plants - root (mool), trunk (kand), thick branch (skandh), bark (chhaal), branch (shakha), sprout (praval), leaf (patra), flower (pushp), fruit (phal) and seed (beej).
Intake-Roots and other parts of plants are pervaded by living organism of their specific classes but at the same time they are also linked with living organism of each other. This way the organism of roots take nutrients from earth and pass on the same to the next part in sequence in the aforesaid order to complete the cycle up to fruit. वनस्पतियों में अनन्तजीवत्व CLUSTERS OF INFINITE SOULS IN PLANTS
५. [प्र.] अह भंते ! आलुए मूलए सिंगबेरे हिरिली सिरिली सिस्सिरिली किट्ठिया छिरिया छीरविरालिया कण्हकंदे वज्जकंदे सूरणकंदे खिलूडे भद्दमुत्था पिंडहलिदा लोहीणी हथिहमगा (थिरुगा) मुग्गकण्णी अस्सकण्णी सीहकण्णी सीहंढी मुसुंढी, जे यावन्ने तहप्पगारा सब्वे ते अणंतजीवा विविहसत्ता ? __ [उ. ] हंता, गोयमा ! आलुए मूलए जाव अणंतजीवा विविहसत्ता।
५. [प्र. ] भगवन् ! आलू, मूला, शृंगबेर (अदरख), हिरिली, सिरिली (चीड़), सिस्सिरिली, फ़ किट्टिका (वाराहीकंद), छिरिया, छीरविदारिका, (सफेद और अधिक दूध वाला कंद), वज्रकन्द,
सूरणकन्द, खिलूड़ा, (आर्द्र-) भद्रमोथा, (नागर मोक्ष), पिंडहरिद्रा (हल्दी की गाँठ), रोहिणी, हुथीहू, थिरुगा, मुद्गकर्णी, अश्वकर्णी, सिंहकर्णी (अडूसा), सिहण्डी (दूधिया थोहर), मुसुण्ढी (काली मुसली), ये और इसी प्रकार की जितनी भी दूसरी वनस्पतियाँ हैं, क्या वे सब अनन्त जीव वाली और विविध (पृथक्-पृथक्) जीव वाली हैं।
[उ. ] हाँ, गौतम ! आलू, मूला यावत् मुसुण्ढी; ये और इसी प्रकार की जितनी भी दूसरी वनस्पतियाँ हैं. वे सब अनन्त जीव वाली और विविध (भिन्न-भिन्न) जीव वाली हैं। अर्थात एककायिक होते हुए भी अनेक जीव पृथक्-पृथक् चेतन सत्ता वाले हैं।
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सप्तम शतक : तृतीय उद्देशक
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Seventh Shatak: Third Lesson
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