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remaining classes of beings are necessarily apratyakhyani (nonrenouncers). That is why in number minimum are complete basic-virtue enhancing renouncers, more then them are partial basic-virtue enhancing renouncers and maximum are non-renouncers. संयत तथा प्रत्याख्यानी आदि का अल्पबहत्व COMPARATIVE NUMBERS OF RESTRAINED AND RENOUNCERS
२८. [प्र. ] जीवा णं भंते ! किं संजया ? असंजया ? संजयासंजया ? __ [उ. ] गोयमा ! जीवा संजया वि०, तिणि वि, एवं जहेव पण्णवणाए तहेव भाणियव्वं जाव वेमाणिया। अप्पाबहुगं तहेव (सु. १४-१६) तिण्ह वि भाणियवं।
२८. [प्र.] भगवन् ! क्या जीव संयत (सर्वथा सावध का त्यागी) हैं, असंयत हैं, अथवा संयतासंयत (आंशिक त्यागी) हैं ? फ़ [उ. ] गौतम ! जीव संयत भी हैं, असंयत भी हैं और संयतासंयत भी हैं। इस तरह प्रज्ञापनासूत्र
३२वें पद में कहे अनुसार यावत् वैमानिकपर्यन्त कहना चाहिए और अल्पबहुत्व भी तीनों का पूर्ववत् ॐ (सू. १४ से १६ तक में उक्त) कहना चाहिए।
28. [Q.] Bhante ! Are living beings samyat (restrained), asamyat (unrestrained) or samyat-asamyat (restrained-unrestrained or partially
restrained)? 4 [Ans.] Gautam ! Living beings are samyat (restrained), asamyat
(unrestrained) and samyat-asamyat (restrained-unrestrained or partially restrained) also. In the same way what has been mentioned in Pada 32 of Prajanapana Sutra should be repeated up to Vaimanik. The statement
about comparative numbers of the three should be repeated as aforesaid 4 (aphorisms 14-16)
२९. [प.] जीवा णं भंते ! किं पच्चक्खाणी ? अपच्चक्खाणी ? पच्चक्खाणापच्चक्खाणी ? [उ. ] गोयमा ! जीवा पच्चक्खाणी वि, एवं तिण्णि वि। ३०. एवं मणुस्साण वि। ३१. पंचिंदियतिरिक्खजोणिया आदिल्लविरहिया। ३२. सेसा सव्वे अपच्चक्खाणी जाव वेमाणिया। २९. [प्र.] भगवन् ! क्या जीव प्रत्याख्यानी हैं, अप्रत्याख्यानी हैं, अथवा प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी
[उ] गौतम ! जीव प्रत्याख्यानी भी हैं, (अप्रत्याख्यानी भी हैं और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी भी हैं)। अर्थात् तीनों प्रकार के हैं।
भगवती सूत्र (२)
(364)
Bhagavati Sutra (2) 步步步步步步步步步步步步步步步步步步牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙牙$$$
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