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चौदह मुहूर्त्त का दिन होता है, तब सोलह मुहूर्त्त की रात्रि होती है। जब चौदह मुहूर्त्तानन्तर का दिन होता 5 है, तब सातिरेक सोलह मुहूर्त्त की रात्रि होती है । जब तेरह मुहूर्त्त का दिन होता है, तब सत्रह मुहूर्त की 5 रात्रि होती है। जब तेरह मुहूर्त्तानन्तर का दिन होता है, तब सातिरेक सत्रह मुहूर्त्त की रात्रि होती है।
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११. इसी प्रकार इस क्रम से दिवस का परिमाण बढ़ाना - घटाना और रात्रि का परिमाण
घटाना - बढ़ाना चाहिए । यथा - जब सत्रह मुहूर्त्त का दिवस होता है, तब तेरह मुहूर्त्त की रात्रि होती है।
जब सत्रह मुहूर्त्तानन्तर का दिन होता है, तब सातिरेक तेरह मुहूर्त्त की रात्रि होती है। जब सोलह मुहूर्त्त
का दिन होता है, तब चौदह मुहूर्त्त की रात्रि होती है। जब सोलह मुहूर्त्तानन्तर का दिन होता है, तब
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सातिरेक चौदह मुहूर्त्त की रात्रि होती है। जब पन्द्रह मुहूर्त्त का दिन होता है, तब पन्द्रह मुहूर्त्त की रात्रि होती है। जब पन्द्रह मुहूर्त्तानन्तर का दिन होता है, तब सातिरेक पन्द्रह मुहूर्त की रात्रि होती है। जब
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11. In the same way the length of the day and the night should be reduced and increased respectively in the following order-When the day is seventeen Muhurts long, the night is thirteen Muhurts long. When the day is slightly less than seventeen Muhurts long, the night is slightly more than thirteen Muhurts long. When the day is sixteen Muhurts long, the night is fourteen Muhurts long. When the day is slightly less than sixteen Muhurts long, the night is slightly more than fourteen Muhurts long. When the day is fifteen Muhurts long, the night is fifteen Muhurts long. When the day is slightly less than fifteen Muhurts long, the night is slightly more than fifteen Muhurts long. When the day is fourteen Muhurts long, the night is sixteen Muhurts long. When the day is slightly less than fourteen Muhurts long, the night is slightly more than sixteen Muhurts long. When the day is thirteen Muhurts long, the night is seventeen Muhurts long. When the day is slightly less than thirteen Muhurts long, the night is slightly more than seventeen Muhurts long.
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१२. [ प्र.] जया णं जंबुद्दीवे दाहिणड्ढे जहन्नए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवति तया णं उत्तरड्ढे वि ?
जया णं उत्तरड्ढे तया णं जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरत्थिमे - पच्चत्थिमे णं उक्कोसिया अट्ठारसमुहुत्ता राई भवति ?
[उ. ] हंता, गोयमः !
'चेव उच्चारेयव्वं जाव राई भवति ।
१२. [ प्र. ] भगवन् ! जब जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से दक्षिणार्द्ध में जघन्य बारह मुहूर्त्त का दिन
होता है, तब क्या उत्तरार्द्ध में भी ( इसी तरह) होता है ? और जब उत्तरार्द्ध में भी इसी तरह होता है,
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5 तब क्या जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत से पूर्व और पश्चिम में उत्कृष्ट ( सबसे बड़ी) अठारह मुहूर्त्त की रात्रि 5
होती है ?
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[.] हाँ, गौतम ! इसी (पूर्वोक्त) प्रकार से सब कहना चाहिए, यावत् " रात्रि होती है ।
पंचम शतक प्रथम उद्देशक
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Fifth Shatak: First Lesson
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