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[उ. ] गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा सव्वमूलगुणपच्चक्खाणी। एवं अप्पाबहुगाणि तिण्णि वि जहा + पढमिल्लए दंडए (सु. १४-१६), नवरं सव्वत्थोवा पंचेंदियतिरिक्खजोणिया देसमूलगुणपच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी असंखेज्जगुणा।
२३. [प्र.] भगवन् ! इन सर्वमूलगुण प्रत्याख्यानी, देशमूलगुण प्रत्याख्यानी और अप्रत्याख्यानी जीवों में कौन किनसे अल्प, अधिक, तुल्य और विशेषाधिक हैं ?
[उ.] गौतम ! सबसे थोड़े सर्वमूलगुण प्रत्याख्यानी जीव हैं, उनसे असंख्यातगुणे देशमूलगुण प्रत्याख्यानी जीव हैं, और अप्रत्याख्यानी जीव उनसे अनन्तगुणे हैं। इसी प्रकार तीनों-औधिक जीवों, __ पंचेन्द्रियतिर्यंचों और मनुष्यों का अल्प-बहुत्व प्रथम दण्डक में कहे अनुसार कहना चाहिए; किन्तु इतना विशेष है कि देशमूलगुण प्रत्याख्यानी पंचेन्द्रियतिर्यंच सबसे थोड़े हैं और अप्रत्यख्यानी पंचेन्द्रियतिर्यंच उनसे असंख्येयगुणे हैं।
23. (Q.) Bhante ! Of these Sarva-mool-guna-pratyakhyani (complete basic-virtue enhancing renouncer), Desh-mool-guna pratyakhyani (partial basic-virtue enhancing renouncer), or apratyakhyani (nonrenouncer) living beings (jivas), which are less (or more or equal or much more) than the other ?
(Ans.] Gautam ! Of the said living beings minimum (in number) are complete basic-virtue enhancing renouncers, innumerable times more than these are partial basic-virtue enhancing renouncers, and infinite
times more than these are non-renouncers. The same is true for all the ___three-living beings (in general), five sensed animals and human beings.
The difference is that in case of five sensed animals minimum are partial $i basic-virtue enhancing renouncers and infinite times more than these
are non-renouncers. ॐ २४. [प्र.] जीवा णं भंते ! किं सव्वुत्तरगुणपच्चक्खाणी ? देसुत्तरगुणपच्चक्खाणी ? + अपच्चक्खाणी ?
[उ. ] गोयमा ! जीवा सव्वुत्तरगुणपच्चक्खाणी वि, तिण्णि वि।
२४. [प्र. ] भगवन् ! जीव क्या सर्व-उत्तरगुण प्रत्याख्यानी हैं, देश-उत्तरगुण प्रत्याख्यानी हैं ॐ अथवा अप्रत्याख्यानी हैं ?
[उ. ] गौतम ! जीव सर्व-उत्तरगुण प्रत्याख्यानी भी हैं, देश-उत्तरगुण प्रत्याख्यानी भी हैं और ॐ अप्रत्याख्यानी भी हैं। (अर्थात्-तीनों प्रकार के हैं)
24. (Q.) Bhante ! Are living beings (jiva) Sarva-uttar-gunapratyakhyani (complete auxiliary-virtue enhancing renouncers), Deshuttar-guna pratyakhyani (partial auxiliary-virtue enhancing renouncers), or apratyakhyani (non-renouncers)?
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भगवती सूत्र (२)
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Bhagavati Sutra (2) |
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