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म. २०.[प्र.] पंचेदियतिरिक्खपुच्छा। ॐ [उ.] गोयमा ! पंचेंदियतिरिक्खा नो सबमूलगुणपच्चक्खाणी, देसमूलगुणपच्चक्खाणी वि, अपच्चक्खाणी वि।
१८. [प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीवों के विषय में भी यही प्रश्न है? ।
[उ. ] गौतम ! नैरयिक जीव, न तो सर्वमूलगुण प्रत्याख्यानी हैं, और न ही देशमूलगुण प्रत्याख्यानी 9 हैं, वे अप्रत्याख्यानी हैं।
१९. इसी तरह यावत् चतुरिन्द्रियपर्यन्त कहना चाहिए।
२०. [प्र. ] पंचेन्द्रियतिर्यंच जीवों के विषय में भी यही प्रश्न है। __ [उ. ] गौतम ! पंचेन्द्रियतिर्यंच सर्वमूलगुण प्रत्याख्यानी नहीं हैं, देशमूलगुण प्रत्याख्यानी हैं और . अप्रत्याख्यानी भी हैं।
18. (Q.) Bhante ! The same question about infernal beings?
(Ans.] Gautam ! Infernal beings are neither complete basic-virtue 4 enhancing renouncers nor partial basic-virtue enhancing renouncers but are non-renouncers.
19. The same should be repeated for all beings up to four sensed beings.
20. [Q.] Bhante ! The same question about five sensed animals ?
(Ans.] Gautam ! Five sensed animals are not complete basic-virtue enhancing renouncers but are partial basic-virtue enhancing renouncers as well as non-renouncers.
२१. मणुस्सा जहा जीवा। २२. वाणमंतर-जोतिस-वेमाणिया जहा नेरइया। २१. मनुष्यों के विषय में जीवों की तरह कथन करना चाहिए। २२. वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के विषय में नैरयिकों की तरह कहना चाहिए।
21. What has been said about living beings (in general) should be : repeated for human beings.
22. What has been said about infernal beings should be repeated for Vanavyantar, Jyotishk and Vaimanik gods.
२३. [प्र.] एएसि णं भंते ! जीवाणं सबमूलगुणपच्चक्खाणीणं देसमूलगुणपच्चक्खाणीणं * अपच्चक्खाणीण य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा ?
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सप्तम शतक : द्वितीय उद्देशक
(361)
Seventh Shatak : Second Lesson
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