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साकेयं ९ चेव अद्धाए १०, पच्चक्खाणं भवे दसहा। .. ७. [प्र. ] भगवन् ! सर्व-उत्तरगुण प्रत्याख्यान कितने प्रकार का है ?
[उ.] गौतम ! वह दस प्रकार का है। यथा-(१) अनागत, (२) अतिक्रान्त, (३) कोटिसहित, (४) नियंत्रित, (५) साकार (सागार), (६) अनाकार (अनागार), (७) परिमाणकृत, (८) निरवशेष, (९) संकेत, और (१०) अद्धा-प्रत्याख्यान। इस प्रकार (सर्वोत्तरगुण) प्रत्याख्यान दस प्रकार का होता है।
7. (Q.) Bhante ! Of how many kinds is Sarva Uttar-guna pratyakhyan (complete auxiliary-virtue enhancing renunciation)?
(Ans.) Gautam ! It is of ten kinds—(1) Anagat, (2) Atikrant, (3) Kotisahit, (4) Niyantrit, (5) Sagaar, (6) Anagaar, (7) Parimanakrit, (8) Niravashesh, (9) Sanket, and (10) Addha-pratyakhyan. Thus pratyakhyan is of ten kinds.
८. [प्र. ] देसुत्तरगुणपच्चक्खाणे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ? __ [उ.] गोयमा ! सत्तविहे पण्णत्ते, तं जहा-दिसिव्वयं १ उवभोग-परीभोगपरिमाणं २ अणत्थदंडवेरमणं ३ सामाइयं ४ देसावगासियं ५ पोसहोववासो ६ अतिहिसंविभागो ७ अपच्छिममारणंतियसंलेहणा झूसणाऽऽराहणता।
८. [प्र.] भगवन् ! देश-उत्तरगुण प्रत्याख्यान कितने प्रकार का है ? ।
[उ.] गौतम ! देश-उत्तरगुण प्रत्याख्यान सात प्रकार का है। यथा-(१) दिग्व्रत (दिशापरिमाणव्रत), (२) उपभोग-परिभोगपरिणाम, (३) अनर्थदण्डविरमण, (४) सामायिक, (५) देशावकाशिक, (६) पौषधोपवास, और (७) अतिथि-संविभाग तथा अपश्चिम मारणान्तिकसंलेखना-जोषणा-आराधना। ____8. [Q.] Bhante ! Of how many kinds is Desh Uttar-guna pratyakhyan (partial auxiliary-virtue enhancing renunciation) ?
(Ans.] Gautam ! It is of seven kinds—(1) Digurat or dishaparimaan vrat (limiting movement in each direction), (2) Upabhoga-paribhogaparimaan (limiting of means of subsistence and comforts), (3) Anarthdanda viraman (abstention from needless and wanton violence), (4) Samayik (meditational and other prescribed practices), (5) Deshavakashik (limiting area of activity), (6) Paushadhopavas (partial ascetic vow and fasting) and (7) Atithi Samvibhag (taking care of the guests or the needy) and Apashchim maranantik-samlekhana-joshanaaradhana (accepting final ultimate vow till death).
विवेचन : मूलगुण-चारित्र रूप कल्पवृक्ष के मूल (जड़) के समान जो गुण है, जैसे प्राणातिपात विरमण आदि। उत्तरगुण-वृक्ष की शाखा के समान जो गुण है, (आगे बताये अनुसार)। सर्व-मूलगुण प्रत्याख्यान मुनि के तथा देश-मूलगुण प्रत्याख्यान देशविरत श्रावक के होता है।
सप्तम शतक : द्वितीय उद्देशक
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Seventh Shatak : Second Lesson
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