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सप्तम शतक :द्वितीय उद्देशक SEVENTH SHATAK (Chapter Seven) : SECOND LESSON
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forfa VIRATI (RENUNCIATION) सुप्रत्याख्यानी और दुष्प्रत्याख्यानी RIGHT AND WRONG RENUNCIATION
१. [प्र. १] से नूणं भंते ! सव्वपाणेहिं सव्वभूतेहिं सव्वजीवेहिं सव्वसत्तेहिं 'पच्चक्खायं' इति । वदमाणस्स सुपच्चक्खायं भवति ? दुपच्चक्खायं भवति ? __ [उ. ] गोयमा ! सव्वपाणेहिं जान सव्वसत्तेहिं 'पच्चक्खाय' इति वदमाणस्स सिय सुपच्चक्खायं भवति, सिय दुपच्चक्खायं भवति।
१. [प्र. १ ] भगवन् ! 'मैंने सर्व प्राण, सर्व भूत, सर्व जीव और सभी सत्त्वों की हिंसा का प्रत्याख्यान किया है', इस प्रकार कहने वाले के सुप्रत्याख्यान होता है या दुष्प्रत्याख्यान ?
[उ. ] गौतम ! 'मैंने सभी प्राण यावत् सभी सत्त्वों की हिंसा का प्रत्याख्यान किया है', इस प्रकार कहने वाले के कदाचित् सुप्रत्याख्यान है और कदाचित् दुष्प्रत्याख्यान होता है।
1. [Q. 1] Bhante ! Is a person saying—“I have renounced violence towards all praan (two to four sensed beings; beings), all bhoot (plant + bodied beings; organisms), all jiva (five sensed beings; souls), and all
sattva (immobile beings; entities)"-liable of achieving good renunciation or bad renunciation ?
(Ans.] Gautam ! A person saying—“I have renounced violence towards all praan (two to four sensed beings; beings)... and so on up to... all sattva (immobile beings; entities)" -is some times liable of achieving good renunciation and sometimes bad renunciation.
[प्र. २ ] से केणटेणं भंते ! एवं वुचइ ‘सव्वपाणेहिं जाव सिय दुपच्चक्खायं भवति ?'
[उ.] गोयमा ! जस्स णं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं 'पच्चक्खायं' इति वदमाणस्स णो एवं अभिसमन्त्रागयं भवति 'इमे जीवा, इमे अजीवा, इमे तसा, इमे थावरा' तस्स णं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं 'पच्चक्खायं' इति वदमाणस्स नो सुपच्चक्खायं भवति, दुपचक्खायं भवति। एवं खलु से दुपच्चक्खाई सबपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं 'पच्चक्खाय' इति वदमाणो नो सच्चं भासं भासति, मोसं भासं
भासइ, एवं खलु से मुसावाई सबपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं तिविहं तिविहेणं अस्संजयविरयम पडिहयपच्चक्खायपावकम्मे सकिरिए असंवुडे एगंतदंडे एगंतबाले यावि भवति।
जस्स णं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं 'पच्चक्खायं' इति वदमाणस्स एवं अभिसमन्नागयं भवति 'इमे म जीवा, इमे अजीवा, इमे तसा, इमे थावरा' तस्स णं सव्वपाणेहिं जाव सव्वसत्तेहिं 'पच्चक्खाय' इति ,
| भगवती सूत्र (२)
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Bhagavati Sutra (2)
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