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संजम भारवहणट्टयाए बिलमिव पन्नगभूएणं अप्पाणेणं आहारमाहारेति; एस णं गोयमा ! सत्थातीतस्स 卐 सत्थपरिणामितयस्स जाव पाण- भोयणस्स अट्ठे पन्नत्ते ।
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[उ. ] गौतम ! जो निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी शस्त्र (चाकू आदि) और मूसलादि का प्रयोग न करने वाले
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है । पुष्प - माला और चन्दनादि के विलेपन से रहित हैं, वे यदि उस आहार को करते हैं, जो (भोज्य वस्तु 5 में पैदा होने वाले) कृमि आदि जन्तुओं से रहित, जीवच्युत और जीवविमुक्त (प्रासुक) है, जो साधु के नहीं बनाया गया है, न बनवाया गया है, जो असकंल्पित - (आधाकर्मादि दोषरहित) है, 5 अनाहूत - (आमंत्रणरहित) है, अक्रीतकृत - (नहीं खरीदा हुआ) है, अनुद्दिष्ट - ( औद्देशिक दोष से रहित ) नवकोटिविशुद्ध है, ( शंकित आदि) दस दोषों से विमुक्त है, उद्गम ( १६ उद्गम - दोष) और उत्पादना ( १६ उत्पादन सम्बन्धी) एषणा दोषों से रहित परिशुद्ध है, अंगारदोषरहित है, धूमदोषरहित है, 5 संयोजनादोषरहित है। तथा जो 'सुरसुर' और 'चपचप' शब्द नहीं करते हुए बहुत शीघ्रता और अत्यन्त विलम्ब से रहित, आहार का लेशमात्र भी छोड़े बिना, भूमि पर नहीं गिराते हुए, गाड़ी की धुरी के
।। सत्तम सए : पढमो उद्देसो समत्तो ॥
२०. [ प्र. ] भगवन् ! शस्त्रातीत ( अग्नि से पका हुआ), शस्त्रपरिणामित (अचित्त किया हुआ), एषित, व्येषित, (मुनिवेश के कारण प्राप्त) सामुदायिक भिक्षारूप पान - भोजन का क्या अर्थ है ?
लिए
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है,
5 और संयम - भार को वहन करने के उद्देश्य से जिस प्रकार सर्प बिल में (सीधा ) प्रवेश करता है, उसी
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अंजन अथवा घाव पर लगाये जाने वाले लेप (मल्हम ) की तरह केवल संयमयात्रा के निर्वाह के लिए
'हे भगवन् ! यह इस प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है' (यों कहकर यावत् गौतम स्वामी 5 विचरते हैं) ।
प्रकार (सहजता व सरलतापूर्वक) जो आहार करते हैं, तो हे गौतम ! वह शस्त्रातीत, शस्त्रपरिणामित, एषित, वेशित और सामुदायिक पान - भोजन का अर्थ है ।
20. [Q.] Bhante ! What is the meaning of taking food and drink with following qualities-Shastrateet (cooked in fire), Shastraparinanamit f (made life-less), Eshit (suitable for an ascetic), Vyeshit (offered due to ascetic garb), Saamudayik (collected from various houses ) ?
[Ans.] Gautam ! Suppose there is a male or female ascetic (nirgranth 5 or nirgranthi) who does not use a weapon (knife etc.) or mace etc., does 5 not have flowers or garlands and does not apply any fragrant paste like sandal-wood. He or she takes food that is free or made free of any insect or other living organism, that conforms to the code of purity prescribed for an ascetic (prasuk), that has neither been cooked or got cooked for an
ascetics, that is not predetermined (free of faults like Aadhaakarma),
that is not an outcome of an invitation (anaahoot), that is neither bought (akritakrit) nor meant (anuddisht) for an ascetic, that has nine purities भगवती सूत्र ( २ )
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Bhagavati Sutra (2)
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